आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
नौ
वह अतीन्द्रिय अनुभव...
गुरुदेव ने कहा, ''पिशाच आकर चुपके से तुम्हारे कान में बता दे कि सामने के व्यक्ति के मन में क्या घट रहा है, उसी को कर्ण-पिशाचिनी विद्या कहते हैं। दूसरे के मन पर काबू कर लेने से ऐसा हो सकता है।''
''यह सिद्धि कैसे मिल सकती है?'' मैंने सीधा प्रश्न किया।
''कई पद्धतियाँ हैं। योग और मन्त्र-जाप की पद्धति काफी सरल है। दूसरी पद्धति है शव-साधना की, जो कठिन तो है, किन्तु तुरन्त प्रभाव दिखाती है।''
''क्या इस सिद्धि से मैं अस्तित्व का रहस्य पा जाऊँगा?''
''यह इस पर निर्भर है कि सिद्धि का उपयोग तुम किस प्रकार करते हो। कुछ लोग इस विद्या का उपयोग केवल रोजी-रोटी का जुगाड़ करने के लिए करते हैं। जो अधिक शठ होते हैं, वे इसी विद्या से जनता को इस प्रकार चमत्कृत करते हैं कि उनके आगे लाखों रुपयों का ढेर लग जाता है। कुछ साधक इस विद्या से मानव जाति की सेवा भी करते हैं। दूसरों के मन की आशंकाएँ हम अक्सर केवल इस कारण दूर नहीं कर पाते कि वे आशंकाएँ हमारे आगे रखी ही नहीं जातीं। इस विद्या से तुम किसी के भी मन को खुली किताब की तरह पढ़ सकते हो। किसी की भी आशंकाओं को समझ कर उन्हें दूर कर सकते हो।''
''लेकिन इससे जीवन और अस्तित्व का रहस्य किस प्रकार प्रकट होगा?'' मैंने पूछा।
चैतन्यानन्द जी बोले, ''दूसरों की आशंकाएँ दूर करके जब तुम उनका मनोबल बढ़ाओगे, तब स्वयं तुम्हारा भी मनोबल अपने-आप बढ़ेगा। इससे तुम स्वयं को निर्भय अनुभव करोगे। कर्ण-पिशाचिनी विद्या से अथवा किसी भी अन्य विद्या से मनुष्य अन्तत: निर्भयता ही तो प्राप्त करता है। मनुष्य के लिए सबसे बडा भय है-मृत्यु। यदि मृत्यु का ही भय मन से निकल गया, तो सबसे बडी निर्भयता मिल जाती है। निर्भयता ही मनुष्य को ज्ञान की ओर ले जाती है। जीवन के रहस्य का ज्ञान तुम्हें निर्भय हो जाने पर अपने-आप मिल जायेगा।''
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