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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

बरसों पहले, आध्यात्मिक तत्त्व-ज्ञान की पुस्तकें पढ़ता था, तो कुछ शान्ति मिल जाती थी। सोचकर बड़ी तसल्ली महसूस होती थी कि जो हो रहा है, सब भगवान की इच्छानुसार ही हो रहा है, खुद को चिन्ता करने की जरूरत ही क्या है। मनुष्य तो भगवान के हाथ का कठपुतला है। जैसे वह नचाता है, वैसे नाचना पड्ता है। पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये होंगे, तो अच्छा नाच नाचोगे। बुरे कर्म किये होंगे, तो बुरा नाच नाचोगे।

हाथ पर हाथ धर कर, तसल्ली से सो जाने के लिए, कितने सुन्दर बहाने हैं ये। यदि कर्म की थ्योरी से भी सन्तोष न हो, तो शुक्र-शनि और सूर्य-चन्द्र इत्यादि आकाश पिण्डों को दोषी ठहरा दो और पाँव पसारकर सो जाओ।

खलबली मचा देने वाले इन विचारों को किसी प्रकार दबाकर, अपने काम में मन लगाने के लिए मैं मजबूर हो जाता हूँ। लोहे के खम्बे हैं। एंगल्स हैं। नट-बोल्ट हैं। नक्शे हैं। स्केल हैं। जमीन पर एक राक्षसी फैक्ट्री जन्म ले रही है।

उस शाम, करीब पाँच बजे, विचारों में खोया-सा मैं खड़ा था। कल के काम की योजना पर मैं सोच रहा था। सहसा एक नौजवान सामने आ खडा हुआ। वह पैण्ट और बुशर्ट पहने हुए था। पच्चीसेक बरस का रहा होगा। गोरा, हँसमुख चेहरा। एक नजर में पंजाबी लगता था। उसका मस्तक मुझे कुछ विचित्र-सा लगा। चेहरे के अनुपात में मस्तक काफी छोटा था।

''नमस्कार, भाई साब!'' उसने कहा। न जाने क्यों, उसके स्वर में एक अनबूझा आकर्षण महसूस हुआ।

''नमस्कार! कहिए?'' मैंने पूछा और अनुमान लगाया कि जरूर यह नौकरी की तलाश में आया है।'

''मुझे नौकरी नहीं चाहिए।'' उसने तपाक से कहा और मैं चौंक गया। मेरे मन के विचार को उसने तत्काल कैसे भॉप लिया था?

उसने जारी रखा, ''मैं ज्योतिषी हूँ और आपके बारे में कुछ बताना चाहता हूँ।' उसके स्वर में श्रद्धा और आत्म-विश्वास की कमी नहीं थी।

''अच्छा?' मैंने बनावटी आश्चर्य व्यक्त किया। ज्योतिषियों को देखकर मुझे हमेशा हँसी आती है। उनके लिए मेरे दिल में कभी इज्जत पैदा नहीं हुई। मसखरी करने या दिल बहलाने के लिए उनके साथ मैं कभी-कभार गप्पें जरूर हाँक लेता हूँ।  

''मेरी जन्म-तिथि बता सकते हो?' मैंने पूछा।

एक क्षण के भी विलम्ब के बिना उसने मेरी सही जन्म-तिथि बता दी। ''कहीं से मालूम कर रखी होगी।'' मैंने सोचा।

''और मेरी पत्नी की?' मैंने फौरन दूसरा सवाल किया।

''वही, जो आपकी।'' उसने बेधड़क कहा। अब मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि पत्नी की व मेरी जन्म-तिथियाँ सचमुच एक हैं। यह जानकारी भी उसे पहले से मिली हुई होगी, इसकी सम्भावना नहीं के बराबर थी। फिर तो उसने मेरे जीवन के अनेक प्रसंग इस प्रकार कह सुनाये, मानो मेरा और उसका बचपन का साथ रहा हो। बेशक इन प्रसंगों में कुछ प्रसंग ऐसे भी थे, जो सचमुच हुए नहीं थे, किन्तु जिनके हो जाने की कामना मैंने निरन्तर की थी। उस युवक की चमत्कारी शक्ति पर मेरा आश्चर्य बढ़ता गया।

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