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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

हडकम्प मच गया था। सब इधर-उधर दौड़ते नजर आये थे। पुलिस आई थी। फैक्ट्री-इन्स्पेक्टर आये थे। मजदूर यूनियन के नेता आये थे।

लक्ष्मी को उसके पति की कीमत, नकद दो सौ रुपये, चुका दी गई थी। मामले को दबाने के पीछे हजारों खर्च हुए थे। न जाने कितने-कितनों की जेबें गर्म हुई थीं। दो सौ का नकद मुआवजा जिस दिन मिला, उस दिन लक्ष्मी के बच्चों ने शायद मिठाई भी खाई हो। यदि गुड़, शक्कर,, फल या टॉफी खाई हो, तो उसे भी मिठाई मानना होगा।

तीसरे दिन लक्ष्मी इस प्रकार काम पर आ पहुँची थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसकी कठोरता को मैं आश्चर्य से देखता रह गया था। मेरे आश्चर्य के जवाब में उसने दो-टूक लहजे में कहा था, ''काम नहीं करूँगी, तो खाऊँगी क्या, बाबू?'' इसका पता मुझे बाद में चला था कि मुआवजे के दो सौ रुपये उसके हाथ में टिके ही नहीं थे। किसी पठान ने छीन लिए थे वे रुपये, क्योंकि लक्ष्मी के पति ने उससे कर्ज ले रखा था।

क्या जिन्दगी है!

अगर कहीं से कोई जन्तर-मन्तर मिल जाये, किसी चमत्कार से जादू-टोना ही सीख जाऊँ मैं, तो? लक्ष्मी की गरीबी एक फूँक में दूर कर दूँ। जिन शैतानों ने उसे सिर्फ दो सौ रुपये का मुआवजा देकर मुआवजे का मजाक ही उड़ाया और उतने छोटे मुआवजे को भी जिस पत्थर-दिल ने छीन लिया, सबको ऐसा सबक सिखाऊँ कि जिन्दगी में कभी न भूल सकें।

मैंने और मेरे एक दोस्त किशन ने, थोड़े ही दिन पहले नागपाश की साधना कर, नागों द्वारा सुरक्षित रखे जाते किसी खजाने तक पहुँचने की कोशिश की थी। कई विचित्र और विकराल अनुभवों से हम गुजरे थे। खजाने तक तो नहीं पहुँच सके थे, हाँ नागों तक अवश्य पहुँच गये थे। क्या नाग सचमुच किसी खजाने की रक्षा करते हैं? अफवाहें इसका जवाब हमेशा हाँ में देती हैं, लेकिन आज तक मैंने इसका कोई प्रमाण नहीं पाया है। अफवाहें कितनी सच हैं, कितनी झूठ, इसकी जाँच करने मैं और किशन निकल पड़े थे। हमें निराशा ही हाथ लगी थी, लेकिन......... आज भी मन में बार-बार यही हूक उठती है, 'काश! हम किसी खजाने तक पहुँच जाते।'

नागपाश की साधना से अगर मैंने लाखों-करोड़ों का खजाना सचमुच पा लिया होता, अगर मैं सुख-चैन के गुलाबों पर शयन कर रहा होता, तो लक्ष्मी जैसी किसी भी गरीब युवती के बारे में मैंने चिन्ता की होती या नहीं?

शायद नहीं।

लेकिन खजाना नहीं मिला था और इसीलिए, अभी मैं चिन्ता कर रहा हूँ। लक्ष्मी के साथ यह जो अन्याय हुआ है, इससे पहले भी जो अनेक अन्याय हुए होंगे इनका कारण क्या है? पिछले जन्म के कर्मों का फल?

कर्मों के फल की थ्योरी ने मुझे हमेशा सताया है। लक्ष्मी अपने किस कर्म की सजा भुगत रही है? क्यों उसका हँसोड़ पति अचानक मर गया? यहाँ जो सरकारी अफसर और मालिक ठाठ से घूम रहे हैं, उन्हें किन सुकर्मों का मीठा फल मिल रहा है?

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