आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
उसके वास्तविक आशय को मैं साफ-साफ पकड़ रहा था। जी कड़ा कर मैं प्रवीण को एक तरफ ले गया। जो जानकारी मुझे मिली थी, मैंने किसी प्रकार प्रवीण के सामने रखी। दो-तीन और मित्रों को साथ लेकर हम पुलिस-स्टेशन पहुँचे। यहाँ हमें अपनी घोर लाचारी का वीभत्स अनुभव हुआ। पुलिस का एक-एक आदमी ऐसे पेश आया, जैसे वह चुन्नीलाल की तनख्याह पर पलता नौकर हो। हमारी फरियाद सुनकर, चुन्नीलाल के खिलाफ कोई कदम उठाने के बजाय, वे लोग तो प्रवीण के ही गले पड गये, ''तुझी को कोठरी दिखानी पड़ेगी। पहले तो बीबी की हत्या कर डाली, अब एक अमीर को फँसाना चाहते हो क्यो? अरे, जो खरोंचे-वरोचें मिली हैं, वे क्या चुन्नीलाल के ही नाखूनों की हैं? सबूत क्या है इसका? तू भी तो उठा-पटक कर सकता है, नोंच सकता है। चल फूट यहाँ से, वरना ऐसा फँसेगा जिन्दगी भर नहीं निकलेगा।'
एक समझदार हवलदार ने हमसे ये नेक शब्द कहे, ''जो हो चुका, सो हो चुका। यहाँ तुम्हारी कोई सुनने वाला नहीं है। चुन्नीलाल को छेडोगे तो मुसीबत ही मोल लोगे। बीबी की लाश सड़ती रह जायेगी, अग्नि-सरकार भी न हो सकेगा। चुन्नीलाल तुम सबसे भीख मँगवा देगा।''
गरीब कितने निर्बल, कितने लाचार होते हैं, इसका उतना आघातजनक अनुभव मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। सुनन्दा के अग्नि-सरकार के समय ही मैंने स्रोच लिया था- निर्बलों के अपमान को, अनादर को, लाचारी को चुपचाप नहीं सहूँगा। कुछ-न-कुछ जरूर करूँगा। कुछ नहीं, तो तन्त्र-मन्त्र ही सीखूँगा और चुन्नीलाल जैसों को भस्म कर उडा दूँगा।
मेरे संस्कार ऐसे नहीं थे कि डाकू बन सकता। न तो संस्कार थे और न शारीरिक ताकत। हाँ, तन्त्र-मन्त्र सीखने का मानसिक बूता जरूर मैंने अपने अन्दर शुरू से महसूस किया था। ताकत से ही दुनिया झुकती है और तन्त्र-मन्त्र भी ताकत दे सकते हैं। तन्त्र-मन्त्र तो ऐसी ताकत दे सकते हैं कि बडे-से-बडे ताकतवर को भी झुकने पर मजबूर कर दें। तन्त्र-मन्त्र से धन भी आ जायेगा और धन की अपनी अलग से ताकत है। अब तो महायोगिनी के साथ सम्पर्क भी है। जाकर उन्हीं से जिद करूँगा- मुझे इतना बडा अघोरी, इतना बड़ा कापालिक, इतना बड़ा सिद्ध पुरुष बना दीजिए कि मेरे घूरने मात्र से चुन्नीलाल जैसे लोग धू-धू कर जल जायें।
अगले ही दिन मैं महायोगिनी अम्बिकादेवी से मिलकर अपने मन की बात कह चुका था। वह खिलखिला कर हँस पड़ी। कहने लगीं, ''पगले हैं आप भी। अरे, दैवी शक्तियाँ प्राप्त करना क्या इतना आसान है कि.........
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