आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार चमत्कार को नमस्कारसुरेश सोमपुरा
|
1 पाठकों को प्रिय 149 पाठक हैं |
यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।
सहसा चुन्नीलाल के बारे में मेरी राय बदल गई। मैंने उसकी प्रदर्शन-प्रवृति को माफ कर दिया। उस क्षण वह मुझे किसी फरिश्ते जैसा महसूस हुआ।
पुलिस ने आत्म-हत्या का सादा मामला नोट कर लिया। कोई उलझनपूर्ण बात दर्ज नहीं हुई। अब लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना था। एम्बुलेन्स में लाश के साथ, प्रवीण और उसके भाई नरेन्द्र को बिठाकर मैं पीछे रुका रहा। कुछेक और मित्रों को भी बुलाया था, जो अभी पहुँचे नहीं थे। उनके पहुँचने पर सबको साथ लेकर मैं अस्पताल आऊँगा, ऐसा दिलासा मैंने प्रवीण को दिया था। तमाशा देखने वालों की टोली बकबक करने लगी थी। इसी तरह के अन्य किस्सों को याद करते लोग गप्पें मारते बैठ गये थे। तभी एक अधेड पुरुष ने मुझे इशारे से बुलाया। सूने कोने में ले जाकर उसने कहा, 'यकीन मानिये, सारे मामले के पीछे चुन्नीलाल का हाथ है।
मैं सातवें आसमान से गिरा, ''चुन्नीलाल का हाथ? कैसे?''
''वह हरामजादा बहुत लम्पट, बहुत चालू है।'' जवाब मिला, ''वर्ली के आँकडे और अमरीकी फीचर का धन्धा करता है। तस्करी में भी दखल रखता है। पुलिस में घुसपैठ है। कहने के लिए तो इस मामूली चाल में रह रहा है, मगर घर पर टेलीफोन है। कार है। रंगीन टी० वी० है। सब है। न जाने कब से उसकी नजर सुनन्दा पर थी। आज... प्रवीण भाई का फोन उसी के घर पर आना था। सन्देशा देने के बहाने वह सुनन्दा के घर में घुस पडा। आसपास कोई था नहीं।
''सब फिल्म देख रहे थे। चुन्नीलाल ने इसका लाभ, उठाकर... जरूर बेचारी सुनन्दा पर... वरना ऐसा हो नहीं सकता। सुनन्दा एकाएक कैसे जहर पी सकती थी? वह दुःखी थी ही नहीं।''
''लेकिन जब पुलिस सबके बयान ले रही थी, तब क्यों आप चुप रहे?' मैंने आक्रोश से पूछा।
अधेड़ ने कहा, ''क्योंकि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता।''
मेरी तड़पन और उलझन की सीमा न रही। किसके पास जाऊँ? क्या करूँ?
मित्रों के आ जाने पर हम अस्पताल पहुँचे। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट अगले दिन मिली। सुनन्दा पर बलात्कार हुआ था। उठापटक और छीना झपटी के निशान उसके शरीर पर थे। मौत का कारण वही था, जो सब जानते थे- जहरीली दवा पीने से।
तभी यहाँ चुन्नीलाल आ पहुँचा। मैंने उसे जलती नजरों से देखा, लेकिन उसे मानो इसका पता ही न चला। वह प्रवीण को समझा रहा था, 'देखो, इस बात को छिपाये रखने में ही गनीमत है। बात खुलेगी, तो बेचारी सुनन्दा की नाहक बदनामी होगी। उस बेचारी का क्या कसूर था? उसने जान दे दी और क्या दे सकती थी। फिर भी... जमाना ऐसा है कि उसी का कसूर निकलेगा। पुलिस में मेरी अच्छी जान-पहचान है। फिक्र न करो। मामला दबाने का सारा इन्तजाम कर दूँगा। पडोसी हूँ। कब काम आऊँगा।
|