ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
गणेश प्रथम पूज्य क्यों?
दीपावली पर लक्ष्मी-पूजन से पूर्व गणपति-पूजन का विधान है क्यों? लक्ष्मी प्राप्त करने से पूर्व गणपति के समान गुण सम्पन्न बनना आवश्यक है। उनके कान बड़े हैं अर्थात् वे सबकी सुनते हैं। उनके नेत्र छोटे हैं और लम्बी शुण्ड, सूक्ष्म दृष्टि, ग्रहण शक्ति की प्रबलता का द्योतक है, अर्थात् वस्तु स्थिति को सूंघकर पहचानने की बुद्धि हममें होनी चाहिए। गणेशजी का उदर विशाल है अर्थात बातों को पचाने को हममें अपूर्व क्षमता एवं सहनशीलता होनी चाहिए। वे एकदन्त हैं अर्थात् उनके खाने और दिखाने के दाँत अलग-अलग नहीं हैं। वे दो भुजाओं से चार भुजाओं जितना श्रम करते हैं। मूषक उनका वाहन है अर्थात् मूषक के समान चंचल मन सदा हमारे अधीन रहना चाहिए। इस प्रकार श्री गणेश के समान गुणों को धारण करने वाला व्यक्ति ही गणपति अर्थात् जननायक या नेतृत्व करने वाला एवं लक्ष्मी प्राप्त करने का अधिकारी बन सकता है।
अत: गणनायक गणेश जी के व्यक्तित्व की प्राप्ति हमारा लक्ष्य हो, श्रम तथा कर्त्तव्यनिष्ठा उसके उपकरण हों; यही दीपमालिका का पावन सन्देश है।
'आद्यौ पूज्यो विनायक:’ इस उक्ति के अनुसार समस्त शुभ कार्यों के प्रारम्भ में गणेश जी की अग्र पूजा विशाल हिन्दू जाति में सुप्रसिद्ध और प्रचलित है। प्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसा क्यों है? इसका बहुत ही सीधा-सादा संक्षिप्त उत्तर यही है कि भगवान् श्री गणेश को प्रसन्न किये बिना कल्याण सम्भव नहीं। भले ही साधक के इष्टदेव भगवान् विष्णु या भगवान् शंकर या जगत्पिता ब्रह्मा ही क्यों न हों; इन सभी देवी-देवताओं की उपासना की निर्विघ्न सम्पन्नता के लिए भी विघ्न-विनाशक श्री गणेश का पूजन स्मरण आवश्यक है। भगवान् श्री गणेश की अद्भुत विशेषता यह है कि उनका स्मरण करते ही सब विघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसी कारण साधकजन प्रार्थना करते हैं-
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा:।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येपु सर्वदा:।।
लोक-परलोक में सर्वत्र सफलता पाने का यह एकमात्र उपाय है। कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व श्री गणेश का पूजन स्मरण अवश्य करना चाहिए।
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