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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

भगवान शिव ने सूत्रों की रचना की। वे साहित्य-संगीत और कला के आचार्य हैं। वे नटराज हैं। उन्होंने 108 मुद्राओं में नृत्य किया जो दक्षिण के नटराज मन्दिर में अंकित है। उनके लिए अच्छा बुरा सब समान है। वे समन्वयकारी हैं, कोई भी वस्तु या स्थान उनके लिए दूषित नहीं है। राजमहल और श्मशान, चन्दन और चिता की राख दोनों को वे स्वीकार करते हैं। दोनों ही उनके लिए बराबर हैं। उन्हें फूल भी पसन्द हैं तो धतूरा और मदार भी प्रिय हैं। उनके सिर पर गंगा और भाल पर चन्द्रमा है तो गले में सर्पों की माला तथा कण्ठ में हलाहल विष है। वे आशुतोष हैं तो त्रिशूलधारी और पिनाकपाणि भी हैं। सहज कृपालु हैं तो अटूट दृढ़ता वाले भी हैं। सती को त्याग करते हैं तो कामदेव को भस्म करते हैं। आज भी हिन्दू विवाहों में उनकी ही कथा से पति-पत्नी प्रतिज्ञाबद्ध होते हैं क्योंकि भगवान शिव और पार्वती आदर्श दम्पत्ति भी हैं। शिवयोगी हैं और अर्धनारीश्वर भी हैं। प्रलयंकर भी हैं तो शान्ति के दूत भी हैं। उनका एक पुत्र शूरवीर और देव सेनापति है तो दूसरा पुत्र बुद्धिमान और मंगल का प्रतीक है। ऋद्धि-सिद्धि का दाता है और सभी देवताओं में अग्रपूज्य है।

एक लोटा जल और कुछ बिल्व पत्र इतनी सी पूजा से वे सन्तुष्ट हो जाते हैं। उन्हें किसी भी बहाने से याद कर लेना ही काफी है। बिना किसी इच्छा के, बिना नागा, लाठी से इनकी मूर्ति पर मारने वाला बैजू उसका नाम उन्होंने अपने नाम से आगे कर दिया। बाबा बैजनाथ धाम में आगे बैजू पीछे नाथ बैजनाथ इसका प्रमाण है। एक चोर जुआड़ी का आख्यान है कि वह शिव मन्दिर में चोरी करने गया और वहाँ के कुछ कपड़े आदि जलाकर प्रकाश किया तो भगवान शिव ने उसे अपने लिए प्रकाश व्यवस्था समझा और उस पर प्रसन्न हो गए। एक भील ने पेड़ पर चढ़ने के लिए उनकी प्रतिमा की सीढ़ी बनाई तो सदन कसाई ने उनकी बटिया से गोश्त तोलकर बेचा, फिर भी शिव उन पर प्रसन्न हुए क्योंकि उन्होंने अपना शरीर शिव पर अर्पित किया। ऐसे भोले बाबा शिव को बारम्बार नमस्कार है। महेश्वर से बढकर कोई देव नहीं, उनकी स्तुति से बढकर कोई स्तुति नहीं, उनके प्रणव मन्त्र ॐ से बढकर कोई मंत्र नहीं।

महेशानापरादेवो महिम्नो ना परास्तुतिः।
अधोरान्नपरोमन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोत्परम्।।

¤ ¤    डा. हौसिला प्रसाद पाण्डेय

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