ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
माँ
जिसे कोई उपमा न दी जा सके,
उसका नाम है- माँ
जिसके प्रेम को कभी पतझड़ न लगे,
उसका नाम है-माँ
जिसकी ममता की कोई सीमा नहीं,
उसका नाम है-माँ
रे युवक! परमात्मा को पाने की प्रथम सीढ़ी है-माँ
माँ और क्षमा दोनों एक हैं,
क्योंकि माफ करने में दोनों नेक हैं...
जब छोटा था तो माँ की शय्या गीली रखता था,
बड़ा हुआ तो माँ की आँखें गीली रखता है।
रे पुत्र! तुझे तो माँ को गीलेपन में रखने की
आदत पड़ गई है...
माता-पिता क्रोधी हैं, शंकाशील हैं,
पक्षपाती है, ये सारी बातें याद हैं...
प्रथम बात तो यह कि
वे तुम्हारे माँ व बाप हैं...
जीवन के अँधेरे पथ में सूरज बनकर
रोशनी फैलाने वाले हैं माँ-बाप,
उनके जीवन में अन्धकार फैलाकर
तुम कभी न करना महापाप...
पत्नी पसन्द से मिल सकती है,
माँ पुण्य से ही मिलती है।
पसन्द से मिलने वालों के लिए,
पुण्य से मिलने वाली को ठुकराना ना...
माँ-बाप को सोने से ना मढ़ो, चलेगा
हीरे से ना जड़ो, चलेगा,
परन्तु उनका हृदय जले व मन आँसू बहाए
वो कैसे चलेगा?
घर की माँ को रुलाएँ और
मन्दिर की माँ को चुनरी ओढाएँ,
याद रखना मन्दिर की माँ
तुझ पर खुश तो नहीं,
शायद खफा जरूर होगी।
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