ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
जीवन क्या है?
'जीवन क्या है? एक जिज्ञासु के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महात्मा टाल्स्टाय ने एक कहानी सुनाई-
'एक बार एक यात्री जंगल-पथ से चला जा रहा था। अचानक एक जंगली हाथी उसकी ओर झपटा। बचाब का अन्य कोई उपाय न देखकर वह रास्ते के एक कुएँ में कूद पड़ा। कुएँ के बीच में बरगद का एक मोटा पेड़ था। यात्री उसी का एक तन्तु पकड़कर लटक गया।
कुछ देर बाद उसकी दृष्टि कुएँ की ओर गई- कदाचित् बही त्राण की कोई सूरत दीख जाए! किन्तु वहाँ तो साक्षात् मौत ही खड़ी थी- विकराल मगर उसके नीचे टपकने की बाट जोह रहा था। भय-कम्पित निरुपाय आँखें ऊपर पेड पर गईं- देखा, शहद के एक छत्ते से बूँद-बूँद मधु टपक रहा था। स्वाद के सामने वह भय को भूल गया। उसने टपकते हुए मधु की ओर बढ़कर अपना मुँह खोल दिया और तल्लीन होकर मूँद-बूँद मधु पीने लगा।
लेकिन यह क्या? उसने साश्चर्य देखा, वट-तन्तु के जिस मूल को पकडकर वह लटका हुआ था, उसे एक सफेद और एक काला चूहा कुतर-कुतरकर काट रहे थे।,,'
जिज्ञासु की प्रश्नसूचक मुद्रा देख महात्मा टाल्स्टाय ने कहा- 'नहीं समझे तुम?' वह हाथी काल था, मगर मृत्यु था; मधु जीवन-रस था और काला तथा सफेद चूहा दिन-रात। इन सनका सम्मिलित नाम ही जीबन है।,
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