ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
मनुष्य की वास्तविक आयु कितनी?
विश्व का निर्माण करने के पश्चात ब्रह्माजी के सामने यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि आयु का बँटवारा किस प्रकार किया जाए? उन्होंने सभी प्राणियों को 30 वर्ष की समान आयु देने का निश्चय किया। प्रत्येक प्राणी से यह पूछा कि क्या इतनी उम्र पर्याप्त है। सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने गधे से पूछा, 'मैंने तुम्हें 30 वर्ष की आयु देने का निश्चय किया है। क्या तुम्हें इतनी आयु पर्याप्त है? गधे ने जवाब दिया मुझे इतनी आयु क्यों देते हो? मैं सड़ी-गली वस्तुएँ खाकर लोगों का बोझा ढोकर जीवन व्यतीत करूँगा। तब ब्रह्माजी ने उसे 18 वर्ष की आयु दी।
यही प्रश्न कुत्ते से पूछा। उसने जवाब दिया 'भगवन! मुझे इतनी उम्र नहीं चाहिए। भौंकते-भौंकते तीस वर्ष कैसे व्यतीत करूँगा, फिर वृद्धावस्था का कष्ट। तब ब्रह्माजी ने उसे 12 वर्ष की आयु दी।
बन्दर की बारी आने पर वह कहता है, 'प्रभु! लोगों का मनोरंजन करना, उल्टी-सीधी गुलाटी लगाना, जो लोग फेंककर दें, वही खाना, इस प्रकार 30 वर्ष कैसे बिताऊँगा?' ब्रह्माजी ने उसे 10 वर्ष की आयु प्रदान की।
अन्य में बचा मनुष्य। ब्रह्माजी ने उससे भी पूछा 'हे मनुष्य! तुझे 30 वर्ष की आयु पर्याप्त है?' बस 30 वर्ष की आयु? अभी तो मैंने मकान बनाना शुरू किया है। पेड़ लगाये हैं। सुख के दिन आते ही मेरी मृत्यु? मुझे तो अधिक आयु दीजिए। ठीक है, मैं तुझे गधे की बची हुई 12 वर्ष आयु देता हूँ।' ब्रह्मा ने कहा। 'सिर्फ 12 वर्ष? कितने कम होते हैं? बच्चे बड़े होंगे न होंगे, तब तक मृत्यु द्वारा ले जाने की तैयारी?' मनुष्य ने कहा।
ठीक है भाई, कुत्ते के बचे 18 वर्ष की आयु भी तुझे देता हूँ।'- ब्रह्माजी ने कहा।
'बच्चों की शादी करना उनके बच्चों की देखभाल करना, प्यार करना, ये सब कौन करेगा? इसके लिए मुझे कुछ वर्ष और चाहिए।'
ब्रह्माजी बोले- 'हे मनुष्य! तुझे इतनी उम्र पर्याप्त है। किन्तु तेरी प्रवृत्ति ही असन्तुष्ट होने की है। इसलिए बन्दर की बची हुई उम्र भी तुझे देता हूँ।'
इस प्रकार मनुष्य की कुल आयु 80 वर्ष हुई। निस्सन्देह प्रथम 30 वर्ष ही मनुष्य का वास्तविक जीवन है। इस उम्र में उनका मन और शरीर बड़ा उत्साहित रहता है। किसी प्रकार की उसे कोई चिन्ता नहीं होती। आगे के 12 वर्ष से गधे की आयु शुरू होती है। इस समय के अन्तराल में गधे के समान बोझा ढोना। यही उसका कर्तव्य होता है। 12 वर्ष समाप्त होते ही कुत्ते की आयु शुरू होती है। संसार का बोझा ढोते-ढोते उसकी कमर बैठ जाती है। वह थक जाता है। शक्ति क्षीण हो जाती है। काम नहीं होता। सिर्फ एक जगह बैठकर दूसरों की निन्दा करना, बुराई करना, कुत्ते के समान भौंकने के सिवा कोई दूसरा काम नहीं रहता। आखिर के 20 वर्ष बन्दर का जीवन जीना पड़ता है। छोटे बच्चों का मनोरंजन करना, उनके लिए अनेक रूप धारण करना, उनका घोड़ा भी बनना, घर के लोग जो दे देवें वही खाना आदि। इस प्रकार बन्दर का जीवन व्यतीत करते-करते अन्त में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। ऐसा है यह मनुष्य का जीवन। मनस्वी व्यक्ति अपने जीवन में अच्छे कार्य कर उसे सन्मार्ग पर लगाते हैं और यशस्वी जीवन बिताते हैं।
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