ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
(4) जहाँ घोड़ी, हथिनी या गौ एक साथ दो बच्चों को जनती हैं या विकारयुक्त विजातीय संतान को जन्म देती हैं, छ: महीनों के भीतर प्राणत्याग कर देती हैं अथवा विकृत गर्भ का प्रसव करती हैं, उस राष्ट्र को शत्रुमण्डल से भय होता है। पशुओं के इस प्रसव-सम्बन्धी उत्पात की शान्ति के उद्देश्य से होम, जप एवं ब्राह्मणों का पूजन करना चाहिए।
(5) जहाँ अग्नि प्रदीप्त न हो, जल से भरे घड़े अकारण ही चूने लगें तो इन उत्पातों के फल मृत्यु, भय और महामारी आदि होते हैं। ब्राह्मणों और देबताओं की पूजा से तथा जप एवं होम से इन उत्पातों की शान्ति होती है।
(6) ज्वरजनित पीड़ा आदि में तथा विघ्नराज एवं ग्रहों के कष्ट से पीड़ित होने पर उस पीडा से छूटने वाले पुरुष को देवालय में स्नान करना चाहिए। बिद्या की प्राप्ति की अभिलाषा रखने वाले छात्र को किसी जलाशय अथवा घर में ही स्नान करना चाहिए तथा विजय की कामना वाले पुरुष के लिए तीर्थ जल में स्नान करना उचित है। जिस नारी का गर्भ स्खलित हो जाता हो, उसे पुष्करिणी में स्नान करायें। जिस स्त्री के नवजात शिशु की जन्म लेते ही मृत्यु हो जाती हो, वह अशोक वृक्ष के समीप स्नान करे। रजोदर्शन की कामना करने वाली स्त्री पुष्पों से शोभायमान उद्यान में और पुत्राभिलाषिणी समुद्र में स्नान करे। उक्त स्नान करने वाले मनुष्य के लिये पूर्व में उबटन लगाने का विधान है। पुनर्नवा (गदहपूर्णा), रोचना, सताड़ (तिनिश) एवं अगुरू वृक्ष की छाल, मधुक (महुआ), दो प्रकार की हल्दी (सोंठ हल्दी और दारु हल्दी), तगर, नागकेसर, अम्बरी, मजिष्ठा (मजीठ), जटामॉसी, यासक, कर्दम (दक्ष कर्दम), प्रियंगु, सर्षप, कुष्ठ (कुट), बला, ब्राम्ही, कुम्कुम एवं सक्तुमिश्रित पंचगव्य इन सबका उबटन करके स्नान करे।
(7) जिस व्यक्ति का मनोबल टूट जाता हो अथवा जिसमें सदैव निर्णय लेने में अस्थिरता बनी रहती हो उसे गाय के दूध से स्नान हेतु थोड़ा-सा दूध जल में मिला लेना चाहिए। यह प्रयोग कुछ दिनों तक करने से अभीष्ट फल प्राप्त होता है।
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