ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
भूरी रेंगनी या छोटी कटेली-
यह पौधा शाकीय जाति का है, जो कि जमीन पर ही फैलता है। यह पौधा सम्पूर्ण भारतवर्ष में सामान्य रूप से पाया जाता है। वनस्पति जगत् के सोलेनेसी कुल में यह पौधा पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम झेन्थोकारपम (Solanum Xanthocarpum) है।
इस पौधे में गले के विकारों को काफी हद तक ठीक करने की क्षमता होती है। इसके प्रयोग से किसी भी प्रकार के दूसरे विकार नहीं होते हैं। इसका एक अत्यन्त ही सरल औषधिक महत्व टांसिल्स को ठीक करने हेतु भी है। इसके लिये किसी भी स्वच्छ स्थल से कटेली के पौधे को उखाड़ा जा सकता है। यदि इसके 'पंचांग' यानि फल फूल, पत्ती, जड़ तथा तना रहें तो और उत्तम है। इसे उखाडने हेतु लोहे के औजारों का प्रयोग वर्जित है। इसके पंचांग जल से धोकर लगभग 3 लीटर जल में डुबोकर इतना उबाला जाता है कि जल का आयतन घटकर आधा हो जाये। अब इसे एक कपडे की सहायता से छान लेते हैं। इस छनित से गरारे करने से गले में बढ़े हुए टॉसिल्स तुरन्त बैठ जाते हैं। यही नहीं, इससे कुल्ला करने से दाँतों में उपस्थित कीड़ों के द्वारा होने वाला दर्द तुरन्त बन्द हो जाता है। गरारे करते समय इसकी कुछ मात्रा पेट में चली भी जाये, तो इसके कारण कुछ भी हानि नहीं होती है।
इसके अलावा कटेली के अन्य उपयोग भी हैं-
(1) काकबन्ध्य स्त्रियों को इसकी जड़ का चूर्ण का सेवन हितकर है।
(2) गले में खराश हो जाने की स्थिति में इसके अर्क का कुल्ला करना हितकर है।
(3) दाँतों में कीड़ों से होने वाले दर्द में इसके फलों का रस तुरन्त आराम देता है।
(4) श्वास रोग में इसके स्टेमेन्स उपयोगी हैं।
रतनजोत -
यह एक वृक्ष है, जो सामान्य रूप से मिलता है। इसका वानस्पतिक नाम 'जेट्रोपा कुरकस (Jatropa Curcus) है।
दाँतों के विकारों में इस पौधे का असर चमत्कारिक रूप से होता है। दाँतों में कभी-कभी कीड़ों के अत्यधिक उत्पादों के परिणामस्वरूप काफी पीडा होती है या कभी-कभी दाँतों के इनेमल में विशेष प्रकार की वेदना होती है। ऐसे समय इस पौधे की एक टहनी से दातून करने मात्र से उसी समय आराम मिल जाता है। यह प्रभाव केवल कीडों से दाँतों में दर्द होता है, उसी स्थिति में प्रकट होता है। किसी अन्य कारण से जनित दॉतों की वेदना में यह प्रभाव नहीं डालता।
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