ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
उन्होंने कहा- 'बहन हम तुमसे एक बात कहने आये हैं।‘
स्त्री ने कहा-‘कहें।'
'तुम्हारे यहाँ जन्म लेने वाले शिशु का नाम 'नारायण’ रख देना’ संतगणों ने कहा।
तब स्त्री बोली-- 'मैं वचन देती हूँ।'
सन्त चले गये। ईश्वरेच्छा से उसकी दसवीं सन्तान भी पुत्र हुई, और स्त्री ने उसका नाम 'नारायण' रख दिया। छोटा होने से वह सभी को बहुत प्रिय था।
अजामिल का अन्त निकट आने पर वह अपने मुख से नारायण' को ही पुकार रहा था। यमदूत उसे लेने आये और भगवान नारायण भी उसे लेने आ गये। संवाद हुआ। यमदूतों ने कहा- 'भगवन यह दुष्ट है, पापी है और हम इसे लेने आये हैं।'
भगवान ने कहा- 'इसने शरीर छोड़ते समय मुझे बड़े प्यार से बुलाया है। मैं ही इसे ले जाऊँगा।' अन्त में उसे प्रभु ही अपने साथ ले गये।
ईश्वर नाम में वह चमत्कार है जिससे अजामिल जैसे अधम और पातकी भी ईश्वर को प्राप्त हो जाते हैं। इस संसार में सभी को दिन-रात काल का ग्रास बनते हुए देखकर भी मनुष्य विचार नहीं करता कि, मेरी भी एक दिन इसी तरह की गति होगी। इस पृथ्वी पर आने वाले प्रत्येक प्राणी को किसी न किसी दिन यहाँ से विदा होना है।
यह संसार एक धर्मशाला है, जिसमें अपना कुछ समय बिताने के लिए हम यहाँ आते हैं। यदि मोह में पड़कर हम इस पर कब्जा करने का विचार करने लगेंगे तो निश्चित रूप से धकिया दिये जायेंगे। यहाँ तो आकर अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर भजन में ही बिताना समझदारी है।
ईश्वर भजन में सबसे श्रेष्ठ कार्य भगवन्नाम स्मरण है। उनके नाम के निरन्तर जाप से वे प्रसन्न होकर स्वयं अपने भक्त को सँभाल लेते हैं। समस्त जीव उन्हीं पुरुषोत्तम भगवान से जन्म लेते हैं और अन्त में सब कुछ उन्हीं में लीन हो जाना है।
भगवान ही समस्त सृष्टि के आधार हैं तथा सभी प्राणियों पर कृपा करके उनके सारे दुःखों का नाश कर देते हैं। उनके विविध नामों का जप करने से उनके विराट स्वरूप का दर्शन धीरे-धीरे होने लगता है। उनके एक नाम के अनन्त अर्थ हैं। इसलिए भगवान का नाम ही सार्थक है, शेष सभी निरर्थक। शबरी, प्रहलाद, ध्रुव, मीरा आदि अनेक भक्त हुए हैं, जिन्होंने अपने प्यारे का नाम स्मरण करके अपने साथ ही सभी के उद्धार का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। संसार के सम्बन्धों की अपेक्षा भगवान से सम्बन्ध बनाओ।
जितना हो सके भगवन्नाम का जप करो उनकी लीलाओं का श्रवण करो। अपनी परम प्रिय वस्तु में जितनी आसक्ति तुम्हें होती है उससे भी अधिक प्रभु में करो। सारे सहारे जवाब दे जायेंगे तब वही एक सहारा बचेगा। तब क्यों नहीं आज और अभी से उनका नाम स्मरण प्रारम्भ कर दें। अजामिल के लिए जब वे आ सकते हैं तो हम तो उनकी श्रेष्ठ सन्तान हैं।
इसलिए प्रेम से बोलो, बार-बार बोलो और बोलते ही रहो- 'नारायण-नारायण!'
¤ महामण्डलेश्वर पूज्यपाद श्री श्रीगिरिजानन्द जी सरस्वती
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