ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
क्यों जपना नाम प्रभु का...?
अजामिल का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। वह गुणी भी था और समझदार भी। उसने वेद-शास्त्रों का विधिवत् अध्ययन किया था, तथा अपने यहाँ आने वाले गुरुजन तथा अतिथियों का सम्मान भी वह श्रद्धापूर्वक करता था साथ ही उनसे ज्ञान चर्चा भी किया करता था। उसके घर में नित्यप्रति देवपूजन, यज्ञ तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता था। पूजन विषयक समस्त व्यवस्थायें स्वयं अजामिल देखता था। वह प्रयास करता था कि पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री फल-फूल तथा समिधाएँ पवित्र और पुष्ट हों, एतदर्थ वह वन तथा उपवन में जाकर इन सामग्रियों को एकत्र करता था।
एक दिन जब वह वन से पूजन सामग्री एकत्रित कर घर को लौट रहा था, तो उसने देखा एक कुंज में कोई युवक स्त्री के साथ प्रेम में लिप्त था। अजामिल ने संस्कारवश अपने आपको यह देखने से रोकने का भरसक प्रयास किया किन्तु सफल न हो सका। वह बार-बार इस प्रेम प्रसंग को देखकर आनन्दित होने लगा। बाद में उसने स्त्री से परिचय प्राप्त किया, और यह ज्ञात होने पर कि वह एक वैश्या है, अजामिल प्रतिदिन उसके यहाँ जाने लगा। संसर्ग से धीरे-धीरे उसके सत्कर्म प्रभावित होने लगे और वह वैश्या की प्रत्येक कामना की तुष्टि के लिए तरह-तरह के दुष्कर्मों में लिप्त होता गया।
उसने चोरी, डकैती और लूट-पाट शुरू कर दी। हत्याएँ करने लगा तथा किसी भी प्रकार से धन प्राप्ति हेतु अन्यायपूर्ण कर्म करके उसे सन्तुष्टि प्राप्त होने लगी। स्थिति यह हुई कि वैश्या से उसे नौ पुत्र प्राप्त हुए तथा दसवीं सन्तान उसके गर्भ में थी। एक दिन कुछ सन्तों का समूह उस ओर से गुजर रहा था। रात्रि अधिक होने पर उन्होंने उसी गाँव में रहना उपयुक्त समझा, जिसमें अजामिल रहता था। गाँव वालों से आवास और भोजन के विषय में चर्चा करने पर, गाँव वालों ने मजाक बनाते हुए साधुओं को अजामिल के घर का पता बता दिया। सन्त समूह अजामिल के घर पहुँचा। अजामिल तो घर पर था नहीं। गॉव वालों ने सोचा था आज ये साधु निश्चित रूप से अजामिल के द्वारा अपमानित होंगे तथा इन्हें पिटना भी पड़ेगा। आगे से ये स्वयं ही कभी इस गाँव की ओर कदम नहीं रखेंगे। सन्त मण्डली ने उसके द्वार पर जाकर राम नाम का उच्चारण किया। घर में से उसकी वही वैश्या पत्नी बाहर आई और साधुओं से बोली-आप शीघ्र भोजन सामग्री लेकर यहाँ से निकल जायें अन्यथा कुछ ही क्षणों में अजामिल आ जायेगा और आप लोगों को परेशानी हो जायेगी।' उसकी बात सुनकर समस्त साधुगण भोजन की सूखी सामग्री लेकर उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर एक वृक्ष के नीचे भोजन बनाने का उपक्रम करने लगे। भोजन बना, भोग लगा और सन्तों ने जब पा लिया तब विचार किया कि यह भोजन किसी संस्कारी ब्राह्मण कुलोत्पन्न के घर का है किन्तु समय के प्रभाव से यह कुसंस्कारी हो चला है। सन्तों का हृदय कृपालु होता है और वे किसी प्ते भी कोई वस्तु स्वीकार करने पर उसे हजार गुना करके ही वापस करते हैं। सभी सन्त वापस अजामिल के घर पहुँचे। आवाज दी पुन: उसकी स्त्री ही बाहर आई।
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