ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
7. लंकापति रावण की शारीरिक शक्ति, सैन्य शक्ति व उसकी बुद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए ही श्री हनुमानजी महाराज ने अशोक वाटिका को उजाड़ा था।
8. मैनाक पर्वत को ऊपर नीचे दाँये बाँये एवं दसो दिशाओं में बढ़ने की या घटने की शक्ति प्राप्त थी।
9. वीर वानरराज अंगद के पिता वानरराज बालि की पत्नी तारा विश्व के प्रत्येक जीव मात्र की भाषा समझ व बोल सकती थी।
10. श्रीरामचरितमानस में एक भी स्थान पर श्री लक्ष्मण हनुमान संवाद नहीं पाया जाता।
11. माता श्री सीताजी को लंकापति रावण जब उठाकर ले गया था, उसके ठीक 10 महीनों बाद श्री रामजी की व लखनलालजी की प्रथम भेंट श्री हनुमानजी महाराज से हुई थी।
12. लंकापति रावण के भाई कुम्भकर्ण की पत्नी का नाम वज्रज्वाला था। इसका मूलकासुर नामक एक पुत्र था, जिसका वध माता श्री सीताजी ने किया था।
13. जिस शिव धनुष को श्रीरामजी महाराज जनक की सभा में तोड़कर श्री माता सीता का वरण किया था, उसका नाम पिनाक धनुष था। महर्षि दानवीर दधीचि ने जब वृत्रासुर के वध हेतु देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियों का दान दिया, तब बज के बनने के पश्चात् जो अस्थियाँ शेष बची, उनसे श्री विश्वकर्माजी ने तीन धनुष बनाये-
(1) शारङ् इसे सारंग भी कहा जाता है। यह धनुष भगवान श्री विष्णुजी द्वारा ही युद्ध के समय उपयोग में लाया जाता था।
(2) दूसरा धनुष पिनाक बना, जिससे भगवान शंकरजी ने त्रिपुरासुर का वध किया व अपने प्रिय शिष्य श्री परशुरामजी को दे दिय था, भगवान श्री परशुरामजी ने इसी धनुष को मिथिला वंश के नरेशों को सौंप दिया था, जो इसकी पूजा अर्चना मात्र ही कर सकते थे।
(3) तीसरा धनुष गाण्डीव बना जो महाभारत के युद्ध में महारथी पाण्डव नन्दन व श्री योगाचार्य परमात्मा श्री कृष्ण के परम आत्मीय सखा अर्जुन द्वारा उपयोग में लाया गया।
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