ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई) श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
अथ तंत्रोक्त देवीसूक्त
महादेवि, देवी, शिवा, नमन करहु स्वीकार।
नमो-नमो भद्रा प्रकृति, सविधि नमन सत बार।।१।।
रुद्रा धात्री, गौरि, मां नित्या प्रणति हजार।
इन्दुरूपिणी, चन्द्रिके, सुखा नमन बहु बार।।२।।
नमो-नमो रिधि सिद्धि प्रदायिनि।।
नैऋति राजसिरी शर्बानी।
पुनि-पुनि करहुं प्रनाम भवानी।।
जय दुर्गा जय दुर्गम पारा।
सर्वकारिनी जय मां सारा।।
ख्याता जय कृष्ना महतारी।
नमो धूम बरना अनुहारी।।
नमो-नमो माता अति सरला।
अति रुद्रा बिनवौं पदकमला।।
नमो-नमो मां जग निरमायिनि।
महादेवि तब कृति कहलायिनि।।
सब जीवनि बनि जो हरिमाया।
ताहि नमन बहु मन बच काया।।
सदा चेतना रूप में, सब जीवनि विस्तार।
ताहि नमन पुनि-पुनि नमन, नमो-नमो सत बार।।३।।
सदा बसति बनि निद्रा रूपा।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
क्षुधा रूप सब जीवनि माहीं।
छाया रूप बिराजि सदा ही।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
मातु सक्ति बनि तुम सब के उर।
तृष्ना ह्वै आवत जन उर पुर।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि बनि क्षमा विराजी।
जाति रूप माता जो छाजी।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
लज्जा रूपिणि मातु नमामी।
जीवनि सान्ति रूप प्रनमामी।।
जो मां श्रद्धा रूप महं, सब के उर किय धाम।
ताहि नमन पुनि-पुनि नमन, माता करउँ प्रनाम।।४।।
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