लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)

श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

212 पाठक हैं

श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में

मार्कण्ड मुनि कहेउ बहोरी।
बोले सुरथ नृपति कर जोरी।।
मातु मोहि दीजै तुम यह बर।
रिपु दल जीति राज पुनि निज कर।।
अगिले जन्म इहइ मम इष्टा।
राज मिलहि नहिं होय विनष्टा।
बनिक बिरागी रहा न मोहा।
उर अनुराग मातु प्रति पोहा।।
मातु मोहिं दीजै बरदाना।
अहमिति ममता नासक ज्ञाना।।
बर मांगेउ तुम जो नृपनन्दन।
पावहु राज जीति निज रिपु रन।।
होइहै थिर अब राजु तिहारा।
पुनि रवि अंस जगत अवतारा।।
आगिल जनम धरा जब पावहु।
सावर्णिक मनु तुम कहलावहु।।
वैस्य वर्य तुम जो वर मांगा।
मिलहिं सोइ नहिं तेहिं कुछ खागा।।
मिलहि मोक्षदायक पुनि ज्ञाना।
सुरथ समाधि परम सुख माना।।

जगदम्बिका वरदान दे निज भक्त मनवांछित कियो।
अस्तुति करत कर जोरि दुहु मन हरष अतिउमगत हियो।।
मार्कण्ड मुनि विरचित चरित जन भगतिते जो नित पढ़ै।।
करतीं कृपा जगदम्बिका धन पुत्र सुख सम्पत्ति बढ़ै।।

जय जगदम्बा तव कृपा, सुरथ नाम महिपाल।
सूर्य वंश सावर्णि मनु अष्टम सृष्टी काल।।४।।

सूर्य अंश सावर्णि मनु अष्टम सृष्टी काल।।

० ० ०

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai