ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
मेरा घर
हरी भरी हरियाली
फैली हो मेरे आँगन में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।
ना कहीं प्रदूषण हो
ना कहीं पर शोर हो
बस हरियाली ही हरियाली
मेरे चारों और हो
तभी तो जीना, जीना होगा
वरना बेहतर है मर जाने में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।
प्रकृति की सुन्दर वस्तुएं
और सारी सुखमय चीजें
खाने पीने की सारी सुविधा
बस छोटे से घर में हो मेरे
चारों तरफ पहाड़ हों मेरे
घर बना हो तलहटी में
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।
या फिर मेरे घर के अन्दर
समस्त समुंद्र हों सारे
सारी उसमें नदियाँ हों
आसमान के हों तारे।
समुंद्र के मध्य का टापू
बस हो मेरे आँगन में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।
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