ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 31 पाठक हैं |
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बसन्त जी का आगमन
आगमन हुआ बसन्त जी का
वृक्ष स्वागत हैं कर रहे ,
भर-भर अंजलि बिखेर रहे
अपने कोमल पीले पत्ते।
सरसों पगड़ी पीली बांधें
लहर-लहर लहरा रही।
पवन बांकी हिलोरें देकर
सुन्दर झुला झुला रही
ऐसे में मदमस्त होकर
बसन्त जी तुमको बुला रहे
आगमन हुआ बसन्त जी का
वृक्ष स्वागत हैं कर रहे।
ऐसे मूल्यवान क्षणों में
जीव जन्तु भी नहीं हैं पीछे
खेतों की हरी भरी मेंड़ों पे
खुले विचरते निडर से
धरती आँचल में खिली धूप का
आनन्द कैसे हैं ले रहे।
आगमन हुआ बसन्त जी का
वृक्ष स्वागत हैं कर रहे।
माँ की छाती पर चला कर हल
पाई है ये अद्भुत हरियाली
चारों ओर के फूलों से फैली खुशहाली
फिर यह हरियाली झाले देकर
बुला रही अपने प्रियतम को
आओ तन मन को छू लो मेरे प्रिये।
आगमन हुआ बसन्त जी का
वृक्ष स्वागत हैं कर रहे।
0 0 0
|