ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 31 पाठक हैं |
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
तुम्हारी हँसी
मोती ही मोती
तुम बिखेर जाती हो
जब होठों पर तुम्हारे
मंद हँसी तुम लाती हो।
लालीयुक्त होंठ तुम्हारे
खुलते हैं जब मंद-मंद
अन्दर चमका कर यामिनी
विलीन अन्दर ही
तुम कर जाती हो।
जब होठों पर तुम्हारे
मंद हँसी तुम लाती हो।
फडफ़ड़ाते ये होंठ तुम्हारे
रोक नहीं पाते बिजली को
कि सी भी तरह से
झलक अन्दर की
दिखला ही जाती हो।
जब होठों पर तुम्हारे
मंद हँसी तुम लाती हो।
0 0 0
|