ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
तेरी याद
एक आहट सी करीब आकर,
ज्यों हवा में बदल जाती है,
तेरी यादें ठीक भी उसी तरह
आकर धूमिल हो जाती हैं।
मगर तुम हो कि-----
कभी पास आकर भी
हमारे पास से गुजर जाती हो,
हमें क्या मालूम था कि
बेवफा तुम नहीं
बल्कि हम ही थे
जो लगाया तुमसे ही दिल।
अब भुगत रहे हैं उसकी सजा
तुम जा-जाकर बेगानों से
खुलकर रहे हो मिल
ये भी कोई मिलन है
मिलना ही है तो मिलो
मुझे उससे क्या?
मगर ना मिलना
हमसे तुम आईंन्दा।
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