ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
पेड़ों रूपी ताज
देखो पहनाया है आज
प्रकृति ने भूमि को
पेड़ों रूपी ताज।
मगर...
आज कुछ स्वार्थी जन
पाने हेतु मन चाहा मोती
नोच रहें हैं माँ का तन
फाड़ रहे हैं इसकी धोती
मल रहे हैं गालों पर
धुएँ रूपी कालिख आज,
देखो पहनाया है आज
प्रकृति ने भूमि को
पेड़ों रूपी ताज।
हरियाली रूपी भूमि को
उजाडक़र मिलेगा क्या
अधिक से अधिक पेड़ लगाकर
सुन्दरता इसकी बढ़ाता जा
मत नोचों इसके तन को
सुनो ध्यान से मेरी बात,
देखो पहनाया है आज
प्रकृति ने भूमि को
पेड़ों रूपी ताज।
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