ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
मुस्काती हवा
फूलों को कर डाल से जुदा
खूब मुस्कुराती है हवा।
मगर उसे ये पता नहीं
वह भी हुई किन-किन से जुदा।
इतनी चंचल इतनी सुखमय
तू बनी है स्वभाव से
तेरा ऐसा स्वभाव ही
है तेरे विषय में बता रहा।
फूलों को कर डाल से जुदा
खूब मुस्कुराती है हवा।
तूने खाई हैं लाख ठोकरें
फिर भी नहीं रूकती है तु
पहाड़ आए या आए चट्टान
काम है तेरा बस बहना।
फूलों को कर डाल से जुदा
खूब मुस्कुराती है हवा।
तेरा स्वभाव ऐसा होने पर
नहीं समझती दूसरे का दुख
सुख यदि तुम्हें नहीं तो
क्यों छिनती हो दूसरे की खुशियाँ
फूलों को कर डाल से जुदा
खूब मुस्कुराती है हवा।
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