ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
सफेद चांद
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे ,
देखते ही बनता है नजारा
चांदी जैसा मेघ चमकता
लगता है बड़ा ही प्यारा।
खो जाता हूँ मनोहर दृश्य में।
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे।
चंचल चितवन पंछी चकोरा
देख्र चांद का रूप वो गोरा
नजर कभी ढूंढने न देता
घूरे बैठ अथक डाल पे।
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे।
चांदी जैसे चमक रहे
तोतिया तरूओं के पत्ते
चंपा जूही के तरूओं पर
खिले श्वेत फूलों के गुच्छे
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे।
ऐसा मनोहर चित्र प्यारा
शायद ना हो कोई दूसरा
देख कर करता अभिनन्दन
फिर आँखें बंद कर ऊतारूं मन में
धवल चन्द्र रात्रि में
आए जब श्वेत मेघों पे।
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