ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
गर्मी
उफ ये गर्मी
अच्छी थी वो सर्दी
जब हम ओढे रजाई
रहते थे बैठे चारपाई
आग जला भगाते सर्दी
खाते रेवड़ी मूंगफली।
मगर आई गर्मी को
भगाएं दूर कैसे हम।
भडक़ाती है और तपन को
फ्रिज की ठंडी बर्फ
न घर में आराम है।
न बाहर किसी बगीचे में
तभी कहते हैं बात सच्ची
गर्मी से सर्दी थी अच्छी।
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