ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
फैलाओ हरियाली
गर्मी की तपिस ने
मचाया कैसा आतंक,
तालाबों को सुखा दिया
पौधे किये तहस-नहस ,
खुद मानव ने ही
खोला मौत का दरवाजा
छुपें कहां हम सभी
अब तो मरने का है इरादा।
मरने से बचाए कौन
था एक सहारा जो
खुद मानव ने उसको काटा।
मानव के साथ - साथ
भुगतना पड़ रहा है
बेजुबान जीवों को भी
मरने का ये जुल्म
आज छोड़कर मानव को
मर रहे हैं जीव सैकड़ों
न स्वर्ग खाली है
न नरक ही।
फिर से लगाओ पेड़
बढाओ धरती पर हरियाली
फैलाओ चारों और धरती पर
खुशहाली ही खुशहाली।
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