ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
तेरी आँखें
तेरी आँखों की क्या तारीफ करूं?
ये हैं गहरी झील सनम
सोचता हूँ इनमें डूब मरूं।
तेरी आँखों की गहराई का
शायद कोई अन्त नहीं,
नीली-नीली इन आँखों में
समुन्द्र लगते हैं कई
दिल चाहता है समुन्द्र में उतर
जी भर आज गोते लगा लूं।
तेरी आँखों की क्या तारीफ करूं?
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