ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
सजी धरा
आज धरा सजी संवरी सी
मिलने चली प्रियतम से
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।
पोत सफेद मिट्टी से कपोल
हरे रंग का ओढ़ के शोल
चेहरे पर ले हया की लाली
करने लगी है प्रेमी से किलोल
गहने समस्त पहन कर ये
समय से पहले चली है मिलने
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।
आज कदम हुए हैं हल्के
बढ़ चले हैं अपने पथ पे
लम्बा पथ चाहे हो भले
होगा छोटा बढ़ते कदमों से
पंछी बन उड़ छू लेगी आसमां
आज मिलेगी अपने प्रियतम से।
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।
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