| ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
 | 
			 31 पाठक हैं | ||||||
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
 
गुरू जी
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 गुरू मेरे हैं श्री बच्चन जी 
 जिनकी कविताएं मशहूर हुई
 उन्ही से हमको मिली प्रेरणा
 और कहीं से मिली नहीं।
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 जब कोई झलक पाता हूँ 
 कविता लिखने बैठ जाता हूँ
 लिखता हूँ फिर मैं पंक्ति
 यहीं से लेखनी शुरू हुई।
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 नाम मुझे मिल जाता है 
 मगर वह कविता बनाता है
 प्रणाम उस कवि को मेरा 
 जिस कवि से ये कविता बनी।
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 जब नाम गुरू का लेता हूँ
 कागज पैन हाथ उठाता हूँ
 लकीरें खींचता हूँ कागज पर
 लेखनी चलती है देती दिखाई
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 गुरू मेरे, मेरे अन्दर हैं 
 हृदय मेरे में वास है 
 हर शब्द उनका है मेरा
 ऐसे गुरू कोई दूसरे नहीं।
 कविता लिखता मैं नहीं 
 लिखवाता है मुझसे कोई।
 
 0 0 0
 			
		  			
| 
 | |||||

 
 
		 





 
 
		 
 
			 

