| ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
 
टूटा हुआ पत्ता
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 एक-दूसरे को सहारा देते
 पर नहीं होते कभी साथ।
 
 इनकी ऐसी खुशहाली पर 
 खुश न होती हवा हठीली
 मिलकर रहता देख इन्हें 
 चलती रहती तेज चाल 
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
 एक बार कुछ ऐसा हुआ 
 एक पता डाल से गिरा 
 ले अपने आगोश में 
 मन में थी उसके मुस्कान
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
 उस हवा की ऐसी दशा
 कहने लगा फिर वह पत्ता
 तुझ सा नहीं दुष्ट कोई 
 अपनों से किया तूने जुदा 
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
 सुनकर फिर हवा बोली
 तूने सारा भेद है खोला 
 कर के तूने ऐसा काम 
 खोल दी तूने मेरी आँख।
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
 घूमा चारों ओर फिर
 खा एक ऐसा चक्कर
 लेजाकर उस प्यारे पत्ते को
 अपनों से दिया मिला।
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
 ज्ञान कुछ सीख लो 
 शिक्षा दूसरों को ऐसी दो
 आँखें खुल जायें उनकी 
 ताकि करें ना गलत काम।
 तेज हवा के झोंको में 
 झिरमिर करते पात।
 
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