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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका


व्यक्तित्व-विकास के लिए कुछ आवश्यक गुण
अपने आप में विश्वास : स्वामी विवेकानन्द अपनी अन्तर्निहित दिव्यता में विश्वास को व्यक्तित्व-विकास का मूल आधार मानते थे। इस आत्मविश्वास के बाद ही ईश्वर में विश्वास का स्थान आता है। यदि किसी का विश्वास हो कि शरीर या मन नहीं, बल्कि आत्मा ही उसका सच्चा स्वरूप है, तो वह एक सुदृढ़ चरित्रवाला बेहतर इन्सान हो सकेगा।

सकारात्मक विचार अपनाओ : स्वामीजी ने स्पष्ट शब्दों में मनुष्यों की दुर्बलता का तिरस्कार किया। एक सुदृढ़ चरित्र के निर्माण हेतु हमारी अन्तर्निहित दिव्यता पर आधारित पौष्टिक विचारों की आवश्यकता है। ''केवल सत्कार्य करते रहो, सर्वदा पवित्र चिन्तन करो, बुरे संस्कारों को रोकने का बस यही एक उपाय है। ... बारम्बार अभ्यास की समष्टि को ही चरित्र कहते हैं और इस प्रकार का बारम्बार अभ्यास ही चरित्र का सुधार कर सकता है।'' इसके अतिरिक्त स्वयं को तथा दूसरों को दुर्बल समझना ही स्वामीजी के मतानुसार एकमात्र पाप है।

असफलताओं तथा भूलों के प्रति दृष्टिकोण : यदि कोई हजार बार प्रयास करके भी हर बार असफल होता है, तो भी स्वामीजी ने एक बार पुन: प्रयास करने की सलाह दी है। एक दीवार झूठ नहीं बोल सकती, परन्तु उसके समान निष्क्रिय जीवन बिताने के स्थान पर गलतियाँ करके उससे सीखने को वे अधिक प्रशंसनीय मानते थे।

आत्मनिर्भरता : मनुष्य स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता है। स्वामीजी कहते हैं ''हम स्वयं ही अपनी वर्तमान अवस्था के लिए जिम्मेदार हैं और भविष्य में हम जो कुछ होना चाहें, उसकी शक्ति भी हमीं में है।''  

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