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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका


संसार का यह समस्त ज्ञान मन की शक्तियों को एकाग्र करने के सिवा अन्य किस उपाय से प्राप्त हुआ है? यदि हमें केवल इतना ज्ञात हो कि प्रकृति के द्वार पर कैसे खटखटाना चाहिये - उस पर कैसे आघात देना चाहिये, तो बस, प्रकृति अपना सारा रहस्य खोल देती है। उस आघात की शक्ति और तीव्रता एकाग्रता से ही आती है। मानव-मन की शक्ति असीम है। वह जितना ही एकाग्र होता है, उतनी ही उसकी शक्ति एक लक्ष्य पर केन्द्रित होती है, यही रहस्य है।

मन को प्रशिक्षित करने का श्रीगणेश श्वास-क्रिया से होता है। नियमित श्वास-प्रश्वास से शरीर की दशा सन्तुलित होती है और इससे मन तक पहुँचने में आसानी होती है। प्राणायाम का अभ्यास करने में सबसे पहले आसन पर विचार किया जाता है। जिस आसन में कोई व्यक्ति देर तक सुखासीन रह सके, वही उसके लिए उपयुक्त आसन है। मेरुदण्ड उन्मुक्त रहे और शरीर का भार पसलियों पर पड़ना चाहिए। मन को वश में करने के लिए तरह-तरह के उपायों का सहारा लेने का प्रयास मत करो, इसके लिए सहज श्वास-क्रिया ही यथेष्ट है।

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