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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

साहसी बनो

बहुत दिनों पहले मैंने समाचार-पत्रों में पढ़ा था कि प्रशान्त महासागर के एक द्वीप पुंज के निकट कुछ जहाज तूफान में फँस गये थे।

'सचित्र लन्दन समाचार' पत्रिका में इस घटना का एक चित्र भी आया था। तूफान में केवल एक ब्रिटिश जहाज को छोड़ अन्य सभी भग्न होकर डूब गये। वह ब्रिटिश जहाज तूफान पार कर चला आया।

चित्र में दिखाया है कि जहाज डूबे जा रहे हैं, उनके डूबते हुये यात्री डेक पर खड़े होकर तूफान से बच जानेवाले यात्रियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हमें इसी प्रकार वीर तथा उदार होना चाहिए।

जब भी अँधेरे का आक्रमण हो, अपनी आत्मा पर बल दो और जो कुछ प्रतिकूल है, नष्ट हो जायेगा; क्योंकि आखिर यह सब स्वप्न ही तो है। आपत्तियाँ पर्वत जैसी भले ही हों, सब कुछ भयावह और अन्धकारमय भले ही दिखे, पर जान लो, यह सब माया है। डरो मत, यह भाग जायेगी। कुचलो और यह लुप्त हो जायेगी। ठुकराओ और यह मर जायेगी। डरो मत, यह न सोचो कि कितनी बार असफलता मिलेगी। चिन्ता न करो। काल अनन्त है। आगे बढ़ो, बारम्बार अपनी आत्मा पर बल दो। प्रकाश जरूर ही आयेगा। तुम चाहे किसी से भी प्रार्थना क्यों न करो, पर कौन तुम्हारी सहायता करेगा? जिसने स्वयं मृत्यु पर विजय नहीं पायी, उससे तुम किस सहायता की आशा करते हो? स्वयं ही अपना उद्धार करो। मित्र, दूसरा कोई तुम्हें मदद नहीं कर सकता, क्योंकि तुम स्वयं ही अपने सबसे बड़े शत्रु और स्वयं ही अपने सबसे बडे हितैषी हो। तो फिर आत्मा का आश्रय लो। उठ खड़े हो जाओ, डरो मत।

वीरता के साथ आगे बढ़ो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ़ रहो, स्थिर रहो। स्वार्थपरता व ईर्ष्या से बचो। आज्ञापालक बनो। सत्य, मानवता और अपने देश के प्रति चिर काल तक निष्ठावान बने रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो - व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं।.. दास लोग सदा ही ईर्ष्या के रोग से ग्रसित रहते हैं। हमारे देश का भी यही रोग है। इससे हमेशा बचो। सब आशीर्वाद और सर्वसिद्धि तुम्हारी हो।

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