लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> व्यक्तित्व का विकास

व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

94 पाठक हैं

मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

जीवन का लक्ष्य सुख नहीं है

मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य सुख नहीं वरन् ज्ञान है।

सुख और आनन्द विनाशी हैं। अत: सुख को चरम लक्ष्य मान लेना भूल है, संसार में सब दुःखों का मूल यही है कि मनुष्य मूर्खतावश सुख को ही अपना आदर्श समझ लेता है। पर कुछ समय के बाद मनुष्य को यह बोध होता है कि जिसकी ओर वह जा रहा है, वह सुख नहीं, वरन् ज्ञान है तथा सुख और दुःख दोनों ही महान् शिक्षक हैं और जितनी शिक्षा उसे भलाई से मिलती है, उतनी ही बुराई से भी।..

चरित्र को एक विशिष्ट ढाँचे में ढालने में भलाई और बुराई, दोनों का समान अंश रहता है, और कभी-कभी तो दुःख, सुख से भी बड़ा शिक्षक हो जाता है। यदि हम संसार के महापुरुषों के चरित्र का अध्ययन करें, तो मैं कह सकता हूँ कि अधिकांश दृष्टान्तों में हम यही देखेंगे कि सुख की अपेक्षा दुःख ने तथा सम्पत्ति की अपेक्षा दारिद्र्य ने ही उन्हें अधिक शिक्षा दी है एवं प्रशंसा की अपेक्षा आघातों ने ही उनके अन्तःस्थ अग्नि को अधिक प्रस्फुरित किया है।

इन्द्रिय-सुख मानव-जीवन का लक्ष्य नहीं है, ज्ञान ही जीवमात्र का लक्ष्य है। हम देखते हैं कि एक पशु जितना आनन्द अपने इन्द्रियों के माध्यम से पाता है, उससे अधिक आनन्द मनुष्य अपनी बुद्धि के माध्यम से अनुभव करता है। साथ ही हम यह भी देखते हैं कि मनुष्य आध्यात्मिक प्रकृति का बौद्धिक प्रकृति से भी अधिक आनन्द प्राप्त करते हैं। इसलिए मनुष्य का परम ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान ही माना जाता है। इस ज्ञान के होते ही परमानन्द की प्राप्ति होती है।

संसार की सारी चीजें मिथ्या, छाया मात्र हैं, वे परम ज्ञान और आनन्द की तृतीय या चतुर्थ स्तर की अभिव्यक्तियाँ हैं।

केवल मूर्ख ही इन्द्रियों के पीछे दौड़ते हैं। इन्द्रियों में रहना सरल है, खाते-पीते और मौज उड़ाते हुए पुराने ढर्रे में चलते रहना सरलतर है। किन्तु आजकल के दार्शनिक तुम्हें जो बतलाना चाहते हैं, वह यह है कि मौज उड़ाओ, किन्तु उस पर केवल धर्म की छाप लगा दो। इस प्रकार का सिद्धान्त बड़ा खतरनाक है। इन्द्रियों में ही मृत्यु है। आत्मा के स्तर पर का जीवन ही सच्चा जीवन है; अन्य सब स्तरों का जीवन मृत्यु-स्वरूप है। यह सम्पूर्ण जीवन एक व्यायामशाला है। यदि हम सच्चे जीवन का आनन्द लेना चाहते हैं, तो हमें इस जीवन के पार जाना होगा।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai