ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
तेरी दासी
हां मैं तेरी दासी बनकर
तेरे चरणों में रह लूंगी,
तेरे संग कांटों पर चलकर
हर दुख तेरा अपना लूंगी।
क्या सोचता है तू मुझको
नारी कोमल मृदु होती है
हाथ लगाने पर जो नारी
फू लों सी मुलायम होती है
पर मैं वो फूल ही सही
जो कांटों को तेरे ढक दूंगी।
हां मैं तेरी दासी बनकर
तेरे चरणों में रह लूंगी।
आंख फेरना तू मुझसे
तुझसे ही मेरी हस्ती है
साथ तेरा जो मिले मुझे तो
देख मेरी क्या चलती है
तेरी राहों में मैं बिछकर
मंजिल तक तेरे पहुंचा दूंगी।
हां मैं तेरी दासी बनकर
तेरे चरणों में रह लूंगी।
हर नारी कोमल है जरूर
मगर इतनी कोमल भी नहीं
वक्त पड़े चट्टान बने
एक जगह पर रहे अड़ी
मुझको अपने साथ में ले ले
तूफानों में काम आऊंगी।
हां मैं तेरी दासी बनकर
तेरे चरणों में रह लूंगी।
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