ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
जीवन
बेरुखी आंधियों में
वक्त के थपेड़ों ने
मुझे ये सिखाया है।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है।
जीवन में खतरे की घंटी
न जाने किस ओर बजे
बाढ आए बह निकले
तूफां आए ये उड़ चले
ले जाकर धकेल दे
किसी गहरे नदी नाले मे
उसमें रहने वाली रेत में,
किसी जगह पड़ी सीप ने
मुझे ये सिखाया है।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है।
मोड़ बहुत से आए
हर मोड़ एक जैसा था
कहीं संभला कहीं गिर पड़ा
मुझे हवा ने उठाया
मोड़ पर पड़े गड्ढों ने
छोटे मोटे पत्थरों ने
पांव के इन छालों ने
भाले जैसे कांटों ने
मुझे ये सिखाया है।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है।
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