ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
बरसात और उमस
आज पानी गिर रहा है
बहुत पानी गिर रहा है
कपड़े गीले हुए नहीं
क्या खाक पानी गिर रहा है।
सोचा था गिरेगा आज जमकर
जो तपिस से झुलसा है तन
उसको देगा ये ठंडक
रह गया ये तो थम कर
इसने तो अग्नि और बढ़ा दी है
क्या खाक ठंडक कर रहा है।
कपड़े गीले हुए नहीं
क्या खाक पानी गिर रहा है।
ऐसी ठंडक से बेहतर तो
वो निराली गर्मी ही थी
लाकर कुछ देर पसीना वो
फिर ठंडक उसने बढ़ा दी
गर्मी इसने और बढ़ा दी
ये कैसा मौसम बदल रहा है।
कपड़े गीले हुए नहीं
क्या खाक पानी गिर रहा है।
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