ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
राजस्थान का थार
टिब्बों की ढलानों पर
उड़ते हुए रेत के कण
मरीचिका सी बनाते हुए
भटकाते प्यासे मन को
पानी तलाश में इधर-उधर
तपती गर्मी उड़ती रेत
सुखा देती है गीले कंठ को
ज्यों फिरूं जैसे मैं पागल
बाहरी तन को झुलसाते हुए
हुई बावरी प्रेमी के बिछोह में।
ऐसे प्यास भागती इधर-उधर
यहां मिलेगा, वहां मिलेगा
जागती है रात-रात भर
तन को झुलसाती
मन को झुलसाती
सांसों के जरिए हृदय को जलाती
पसीना तन से खूब छुटाती
हंसाती है तो कभी रूलाती
राजस्थान के थार की गर्मी।
पहाड़ों से टकराकर
फिर से गर्म होकर आती पवनें
तन झुलसाती खूब सताती थार की गर्मी।
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