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स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9604
आईएसबीएन :9781613015834

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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।


महादानी


दादा जी
कुछ बताओ समझाओ।

आप कहते हैं
कर्ण बडा दानवीर
ब्राह्मण के मांगने पर
शरीर से कवच और कुण्डल
नोचकर दान कर दिए।

याचक ने आभार किया,
दानवीर खुश हो गया।

दादी कहती है
राजा हरिश्चन्द्र बड़ा दानवीर है
सपने में दिए दान का यथार्थ
राज्य त्याग, कष्टों का साथ
सत्यवाद बना इतिहास।

गुरू जी कहते हैं
सत्यवादी हरीशचन्द्र से
दानवीर कर्ण से
बडा महादानी है
स्वैच्छिक रक्तदाता
अजनबी की जिंदगी बचाने
ब्लडबैंक में जमा करता।
न आभार, न इतिहास बनता
दादा जी महादानी कौन?

बेटे,
गुरू जी सच कहते हैं
कर्ण, हरीशचन्द्र को देखा नहीं
रक्तदाता को देखते हैं
कोई रक्त मांगता नहीं
हंसते-हंसते रक्तदान करते
बडा इन्सान बनते।

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