ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
सातवीं दोपहर
सूरज का सातवाँ घोड़ा
अर्थात वह जो सपने भेजता है!
अगले दिन मैं गया और माणिक मुल्ला से बताया कि मैंने यह सपना देखा तो वे झल्ला गए : 'देखा है तो मैं क्या करूँ? जब देखो तब 'सपना देखा है, सपना देखा है!' अरे कौन शेर, चीता देखा है कि गाते-फिरते हो!' जब मैं चुप हो गया तो माणिक मुल्ला उठ कर मेरे पास आए और सांत्वना-भरे शब्दों में बोले, 'ऐसे सपने तुम अक्सर देखते हो?' मैंने कहा, 'हाँ' तो बोले, 'इसका मतलब है कि प्रकृति ने तुम्हें विशेष कार्य के लिए चुना है! यथार्थ जिंदगी के बहुत-से पहलुओं को, बहुत-सी चीजों के आंतरिक संबंध को और उनके महत्व को तुम सपनों में एक ऐसे बिंदु से खड़े हो कर देखोगे जहाँ से दूसरे नहीं देख पाएँगे और फिर अपने सपनों को सरल भाषा में तुम सबके सामने रखोगे। समझे?' मैंने सिर हिलाया कि हाँ मैं समझ गया तो वे फिर बोले, 'और जानते हो ये सपने सूरज के सातवें घोड़े के भेजे हुए हैं!'
जब मैंने पूछा कि यह क्या बला है तो और लोग अधीर हो उठे और बोले, यह सब मैं बाद में पूछ लूँ और माणिक मुल्ला से कहानी सुनाने का इसरार करने लगे।
माणिक मुल्ला ने आगे कहानी सुनाने से इनकार किया और बोले, एक अविच्छिन्न क्रम में इतनी प्रेम-कहानियाँ बहुत काफी हैं, सच तो यह कि उन्होंने इतने लोगों के जीवन को ले कर एक पूरा उपन्यास ही सुना डाला है। सिर्फ उसका रूप कहानियों का रखा ताकि हर दोपहर को हम लोगों की दिलचस्पी बदस्तूर बनी रहे और हम लोग ऊबें न। वरना सच पूछो तो यह उपन्यास ही था और इस ढंग से सुनाया गया था कि जो लोग सुखांत उपन्यास के प्रेमी हैं वे जमुना के सुखद वैधव्य से प्रसन्न हों, स्वर्ग में तन्ना और जमुना के मिलन पर प्रसन्न हों, लिली के विवाह से प्रसन्न हों, और सत्ती के चाकू से माणिक मुल्ला की जान बच जाने पर प्रसन्न हों, और जो लोग दुखांत के प्रेमी हैं वे सत्ती के भिखारी जीवन पर दु:खी हों, तन्ना की रेल दुर्घटना पर दु:खी हों, लिली और माणिक मुल्ला के अनंत विरह पर दु:खी हों।
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