लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा

सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

240 पाठक हैं

'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


अनध्याय

यद्यपि मेरा हाजमा भी दुरुस्त है और मैंने डाण्टे की डिवाइना कामेडिया भी नहीं पढ़ी है फिर भी मैं एक सपना देख रहा हूँ।

चिमनी से निकलने वाले धुएँ की तरह एक सतरंगा इंद्रधनुष धीरे-धीरे उग रहा है। आकाश के बीचों-बीच आ कर वह इंद्रधनुष टँग गया है।

एक जलता हुआ होठ, काँपता हुआ - दाईं ओर से इंद्रधनुष की ओर खिसक रहा है।

दाईं ओर माणिक का होठ, बाईं ओर लीला का। खिसकते-खिसकते इंद्रधनुष के नजदीक आ कर दोनों रुक जाते हैं।

नीचे धरती पर महेसर दलाल एक गाड़ी खींचते हुए आते हैं। गाड़ी चमन ठाकुर की भीख माँगने वाली गाड़ी है। उसमें छोटे-छोटे बच्चे बैठे हैं। जमुना का बच्चा, तन्ना का बच्चा, सत्ती का बच्चा। चमन ठाकुर का एक कटा हुआ हाथ अंधे अजगर की तरह आता है। बच्चों की गरदन में लिपट जाता है, मरोड़ने लगता है। उनका गला घुटता है।

इंद्रधनुष के दोनों प्यासे होठ और नजदीक आ जाते हैं।

तन्ना के दोनों कटे हुए पैर राक्षसों की तरह झूमते हुए आते हैं। उनमें नई लोहे की नालें जड़ी हैं। बच्चे उनसे कुचल जाते हैं। हरी घास - दूर-दूर तक बरसात से साइकिलों से कुचली हुई बीरबहूटियाँ फैली हैं। रक्त सूख कर गाढ़ा काला हो गया है। इंद्रधनुष की छाया तमाम पहाड़ों और मैदानों पर तिरछी हो कर पड़ती है।

माताएँ सिसकती हैं! जमुना, लिली, सत्ती।

दोनों होठ इंद्रधनुष के और समीप खिसकने लगते हैं - और समीप - और समीप।

एक काला चाकू इंद्रधनुष को रस्से की तरह काट देता है। दोनों होठ गोश्त के मुरदा लोथड़ों की तरह गिर पड़ते हैं।

चीलें... चीलें... चीलें... टिड्डियों की तरह अनगिनत चीलें!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book