ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
|
9 पाठकों को प्रिय 240 पाठक हैं |
'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
मैंने अवसर का लाभ उठाते हुए फौरन वह काले बेंटवाला चाकू ताख पर से उठाया और बीच में रखते हुए कहा, 'अच्छा इसको सत्ती की कहानी का केंद्र-बिंदु बनाइए!'
'बनाइए!' माणिक मुल्ला गंभीर हो कर बोले, 'यह तो उसकी कहानी का केंद्र-बिंदु है ही! जब मैं यह चाकू देखता हूँ तो कल्पना करता हूँ - इसके काले बेंट पर बहुत सुंदर फूल की पाँखुरियों जैसे गुलाबी नाखूनोंवाली लंबी पतली उँगलियाँ आवेश से काँप रही हैं, एक चेहरा जो आवेश से आरक्त है, थोड़ी निराशा से नीला है और थोड़े डर से विवर्ण है! यह स्मृति-चित्र है सत्ती का जब वह अंतिम बार मुझे मिली थी और मैं आँख उठा कर उसकी ओर देख भी नहीं सका था। उसके हाथ में यही चाकू था।'
उसके बाद उन्होंने सत्ती की जो कहानी बताई, उसे टेकनीक न निबाह कर मैं संक्षेप में बताए देता हूँ :
माणिक मुल्ला का कहना था कि वह लड़की अच्छी नहीं कही जा सकती थी क्योंकि उसके रहन-सहन में एक अजब-सी विलासिता झलकती थी, चाल-ढाल भी बहुत उद्दीप्त करनेवाली थी, वह हर आने-जानेवाले, परिचित-अपरिचित से बोलने-बतियाने के लिए उत्सुक रहती थी, गली में चलते-चलते गुनगुनाती रहती थी और अकारण ही लोगों की ओर देख कर मुसकरा दिया करती थी।
लेकिन माणिक मुल्ला का कहना था कि वह लड़की बुरी भी नहीं कही जा सकती थी क्योंकि उसके बारे में कोई वैसी अफवाह नहीं थी और सभी लोग अच्छी तरह जानते थे कि अगर कोई उसकी तरफ ऐसी-वैसी निगाह से देखता तो वह आँखें निकाल सकती है। उसकी कमर में एक काले बेंट का चाकू हमेशा रहा करता था।
|