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ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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240 पाठक हैं |
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
तन्ना की बड़ी बहन घर का काम-काज, झाड़ू-बुहार, चौका-बरतन किया करती थी; मँझली बहन जिसके दोनों पाँवों की हड्डियाँ बचपन से ही खराब हो गई थीं, या तो कोने में बैठे रहती थी या आँगन-भर में घिसल-घिसल कर सभी भाई-बहनों को गालियाँ देती रहती थी; सबसे छोटी बहन पंचम बनिया के यहाँ से तंबाकू, चीनी, हल्दी, मिट्टी का तेल और मंडी से अदरक, नींबू, हरी मिर्च, आलू और मूली वगैरह लाने में व्यस्त रहती थी। तन्ना सुबह उठ कर पानी से सारा घर धोते थे, बाँस में झाड़ू बाँध कर घर-भर का जाला पोंछते थे, हुक्का भरते थे, इतने में स्कूल का वक्त हो जाता था। लेकिन खाना इतनी जल्दी कहाँ से बन सकता था, अत: बिना खाए ही स्कूल चले जाते थे। स्कूल से लौट कर आने पर उन्हें फिर शाम के लिए लकड़ी चीरनी पड़ती थी, बुरादे की अँगीठी भरनी पड़ती थी, दीया-बत्ती करनी पड़ती थी, बुआ (उस औरत को सब बच्चे बुआ कहा करें यह महेसर दलाल का हुक्म था) का बदन भी अकसर दबाना पड़ता था क्योंकि बेचारी काम करते-करते थक जाती थी और तब तन्ना चबूतरे के सामने लगी हुई म्यूनिसिपैलिटी की लालटेन के मंद-मधुर प्रकाश में स्कूल का काम किया करते थे। घर में लालटेन एक ही थी और वह बुआ के कमरे में जलती-बुझती रहती थी।
तन्ना का दिल कमजोर था। अत: तन्ना अक्सर माँ की याद करके रोया करते थे और उन्हें रोते देख कर बड़ी और छोटी बहन भी रोने लगती थी और मँझली अपने दोनों टूटे पैर पटक कर उन्हें गालियाँ देने लगती थी और दूसरे दिन वह बुआ से या बाप से शिकायत कर देती थी और बुआ माथे में आलता बिंदी लगाते हुए रोती हुई कहती थीं, 'इन कंबख्तों को मेरा खाना-पीना, उठना-बैठना, पहनना-ओढ़ना अच्छा नहीं लगता। पानी पी-पी कर कोसते रहते हैं। आखिर कौन तकलीफ है इन्हें! बड़े-बड़े नवाब के लड़के ऐसे नहीं रहते जैसे तन्ना बाबू बुल्ला बना के, पाटी पार के, छैल-चिकनियों की तरह घूमते हैं।' और उसके बाद महेसर दलाल को परिवार की मर्यादा कायम रखने के लिए तन्ना को बहुत मारना पड़ता था, यहाँ तक कि तन्ना की पीठ में नील उभर आती थी और बुखार चढ़ आता था और दोनों बहनें डर के मारे उनके पास जा नहीं पातीं और मँझली बहन मारे खुशी के आँगन-भर में घिसलती फिरती थी और छोटी बहन से कहती थी, 'खूब मार पड़ी। अरे अभी क्या? राम चाहें तो एक दिन पैर टूटेंगे, कोई मुँह में दाना डालनेवाला नहीं रह जाएगा। अरी चल, आज मेरी चोटी तो कर दे! आज खूब मार पड़ी है तन्ना को।'
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