ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
|
9 पाठकों को प्रिय 240 पाठक हैं |
'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
यह देख कर कि माणिक मुल्ला ओंकार को डाँट रहे हैं, हम लोगों ने भी ओंकार को डाँटना शुरू कर दिया। यहाँ तक कि जब माणिक मुल्ला ने हम लोगों को डाँटा तो हम लोग चुप हुए और उन्होंने अपनी कहानी प्रारंभ की –
तन्ना के कोई भाई नहीं था। पर तीन बहनें थीं। उनमें से जो सबसे छोटी थी उसी को जन्म देने के बाद उसकी माँ गोलोक चली गई थी। रह गए पिताजी जो दलाल थे। चूँकि बच्चे छोटे थे, उनकी देख-भाल करनेवाला कोई नहीं था, अत: तन्ना के पिता महेसर दलाल ने अपनी यह इच्छा जाहिर की कि किसी भले घर की कोई दबी-ढँकी सुशील कन्या मिल जाए तो बच्चों का पालन-पोषण हो जाए, वरना अब उन्हें क्या बुढ़ापे में कोई औरत का शौक चढ़ा है? राम राम! ऐसी बात सोचना भी नहीं चाहिए। उन्हें तो सिर्फ बच्चों की फिक्र है वरना अब तो बचे-खुचे दिन राम के भजन में और गंगा-स्नान में काट देने हैं। रही तन्ना की माँ, सो तो देवी थी, स्वर्ग चली गई; महेसर दलाल पापी थे सो रह गए। बच्चों का मुँह देख कर कुछ नहीं करते वरना हरद्वार जा कर बाबा काली कमलीवाले के भंडारों में दोनों जून भोजन करते और लोक-परलोक सुधारते।
लेकिन मुहल्ले-भर की बड़ी-बूढ़ी औरतें कोई ऐसी सुशील कन्या न जुटा पाईं जो बच्चों का भरण-पोषण कर सके, अंत में मजबूर हो कर महेसर दलाल एक औरत को सेवा-टहल और बच्चों के भरण-पोषण के लिए ले आए।
उस औरत ने आते ही पहले महेसर दलाल के आराम की सारी व्यवस्था की। उनका पलँग, बिस्तर, हुक्का-चिलम ठीक किया, उसके बाद तीनों लड़कियों के चरित्र और मर्यादा की कड़ी जाँच की और अंत में तन्ना की फिजूलखर्ची रोकने की पूरी कोशिश करने लगी। बहरहाल उसने तमाम बिखरती हुई गृहस्थी को बड़ी सावधानी से सँभाल लिया। अब उसमें अगर तन्ना और उनकी तीनों बहनों को कुछ कष्ट हुआ तो इसके लिए कोई क्या करे?
|