लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा

सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603
आईएसबीएन :9781613012581

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

240 पाठक हैं

'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


'अरे तन्ना बहुत डरपोक है। मैंने तो माँ को राजी कर लिया था पर तन्ना को महेसर दलाल ने बहुत डाँटा। तब से तन्ना डर गया और अब तो तन्ना ठीक से बोलता भी नहीं।' माणिक ने कुछ जवाब नहीं दिया तो फिर जमुना बोली, 'असल में तन्ना बुरा नहीं है पर महेसर बहुत कमीना आदमी है और जब से तन्ना की माँ मर गई तब से तन्ना बहुत दुखी रहता है।' फिर सहसा जमुना ने स्वर बदल दिया और बोली, 'लेकिन फिर तन्ना ने मुझे आसा में क्यों रखा? माणिक, अब न मुझे खाना अच्छा लगता है न पीना। स्कूल जाना छूट गया। दिन-भर रोते-रोते बीतता है। हाँ, माणिक।' और उसके बाद वह चुपचाप बैठ गई। माणिक बोले, 'तन्ना बहुत डरपोक था। उसने बड़ी गलती की!' तो जमुना बोली, 'दुनिया में यही होता आया है!' और उदाहरण स्वरूप उसने कई कहानियाँ सुनाईं जो उसने पढ़ी थीं या चित्रपट पर देखी थीं।

माणिक उठे तो जमुना ने पूछा कि 'रोज आओगे न!' माणिक ने आना-कानी की तो जमुना बोली, 'देखो माणिक, तुमने नमक खाया है और नमक खा कर जो अदा नहीं करता उस पर बहुत पाप पड़ता है क्योंकि ऊपर भगवान देखता है और सब बही में दर्ज करता है।' माणिक विवश हो गए और उन्हें रोज जाना पड़ा और जमुना उन्हें बिठा कर रोज तन्ना की बातें करती रही।

'फिर क्या हुआ!' जब हम लोगों ने पूछा तो माणिक बोले, 'एक दिन वह तन्ना की बातें करते-करते मेरे कंधे पर सिर रख कर खूब रोई, खूब रोई और चुप हुई तो आँसू पोंछे और एकाएक मुझसे वैसी बातें करने लगी जैसी कहानियों में लिखी होती हैं। मुझे बड़ा बुरा लगा और सोचा अब कभी उधर नहीं जाऊँगा, पर मैंने नमक खाया था और ऊपर भगवान सब देखता है। हाँ, यह जरूर था कि जमुना के रोने पर मैं चाहता था कि उसे अपने स्कूल की बातें बताऊँ, अपनी किताबों की बातें बता कर उसका मन बहलाऊँ। पर वह आँसू पोंछ कर कहानियों-जैसी बातें करने लगी। यहाँ तक कि एक दिन मेरे मुँह से भी वैसी ही बातें निकल गईं।'

'फिर क्या हुआ?' हम लोगों ने पूछा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai