ई-पुस्तकें >> सूरज का सातवाँ घोड़ा सूरज का सातवाँ घोड़ाधर्मवीर भारती
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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।
माणिक मुल्ला सीना ताने और काँपते हुए पाँवों को सँभाले हुए आगे बढ़ते गए और वह औरत वहाँ से अदृश्य हो गई। उन्होंने बार-बार आँखें मल कर देखा, वहाँ कोई नहीं था। उन्होंने संतोष की साँस ली, गाय को टिक्की दी और लौट चले। इतने में उन्हें लगा कि कोई उनका नाम ले कर पुकार रहा है। माणिक मुल्ला भली-भाँति जानते थे कि भूत-प्रेत मुहल्ले भर के लड़कों का नाम जानते हैं, अत: उन्होंने रुकना सुरक्षित नहीं समझा। लेकिन आवाज नजदीक आती गई और सहसा किसी ने पीछे से आ कर माणिक मुल्ला का कालर पकड़ लिया। माणिक मुल्ला गला फाड़ कर चीखने ही वाले थे किसी ने उनके मुँह पर हाथ रख दिया। वे स्पर्श पहचानते थे। जमुना!
लेकिन जमुना ने कान नहीं उमेठे। कहा, 'चलो आओ।' माणिक मुल्ला बेबस थे। चुपचाप चले गए और बैठ गए। अब माणिक भी चुप और जमुना भी चुप। माणिक जमुना को देखें, जमुना माणिक को देखे और गाय उन दोनों को देखे। थोड़ी देर बाद माणिक ने घबरा कर कहा, 'हमें जाने दो जमुना!' जमुना ने कहा, 'बैठो, बातें करो माणिक। बड़ा मन घबराता है।'
माणिक फिर बैठ गए। अब बात करें तो क्या करें? उनकी क्लास में उन दिनों भूगोल में स्वेज नहर, इतिहास में सम्राट जलालुद्दीन अकबर, हिंदी में 'इत्यादि की आत्मकथा' और अंगरेजी में 'रेड राइडिंग हुड' पढ़ाई जा रही थी, पर जमुना से इसकी बातें क्या करें! थोड़ी देर बाद माणिक ऊब कर बोले, 'हमें जाने दो जमुना, नींद लग रही है।'
'अभी कौन रात बीत गई है। बैठो!' कान पकड़ कर जमुना बोली। माणिक ने घबरा कर कहा, 'नींद नहीं लग रही है, भूख लग रही है।'
'भूख लग रही है! अच्छा, जाना मत! मैं अभी आई।' कह जमुना फौरन पिछवाड़े के सहन में से हो कर अंदर चली गई। माणिक की समझ में नहीं आया कि आज जमुना एकाएक इतनी दयावान क्यों हो रही है, कि इतने में जमुना लौट आई और आँचल के नीचे से दो-चार पुए निकालते हुए बोली, 'लो खाओ। आज तो माँ भागवत की कथा सुनने गई हैं।' और जमुना उसी तरह माणिक को अपनी तरफ खींच कर पुए खिलाने लगी।
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