ई-पुस्तकें >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
129. बौद्ध मत और हिन्दू धर्म में सब से बड़ा भेद इस बात का है कि बौद्ध धर्म कहता है, 'इस सब को भ्रम अनुभव करो', जब कि हिन्दू धर्म का कहना है, 'यह अनुभव करो कि माया के भीतर सत्य है।' यह 'कैसे' किया जाय? इस 'कैसे' के सम्बन्ध में हिन्दू धर्म ने कोई कठोर नियम निर्धारित करने का दावा नहीं किया। बौद्ध अनुशासन का पालन केवल मठवाद दारा ही सम्भव था; जब कि हिन्दू अपने श्रेयस् की उपलब्धि जीवन के किसी भी आश्रम में कर सकता है। सभी मार्ग समान रूप से एक ही सत्य तक ले जानेवाले हैं। धर्म की एक सवोंच्च और महानतम उक्ति को एक कसाई के मुख से कहलाया गया है। उसने एक विवाहिता स्त्री की आज्ञा से एक संन्यासी को उपदेश दिया। इस प्रकार बौद्ध धर्म श्रमणों का धर्म बना, किन्तु हिन्दू धर्म संन्यास की श्रेष्ठता स्वीकार करते हुए भी, दैनिक कर्तव्यो के प्रति सच्चे बने रहने का धर्म है। वह कर्तव्य जो भी हों, मनुष्य उसके पथ पर चलकर ईश्वर प्राप्त कर सकता है।
130. स्वामीजी ने स्त्रियों के लिए संन्यास के आदर्श की चर्चा करते हुए कहा, ''अपने वर्ग के लिए नियम निर्धारित कर लो, अपने विचारों को सूत्र-बद्ध कर लो, और यदि गुंजाइश हो, तो थोड़ी सार्वदेशिकता का भी समावेश करो। पर याद रखो, किसी भी समय में समस्त विश्व में आधे दर्जन से अधिक व्यक्ति इसके लिए तयार नहीं मिलेगे। सम्प्रदायों के लिए स्थान होना चाहिए, पर साथ ही सम्प्रदायों से ऊपर उठने के लिए भी। तुमको स्वयं अपने औजार गढने होंगे। नियम बनाओ किन्तु उन्हें इस प्रकार बनाओ कि जब लोग बिना उनके काम चलाने लगें तो वे उन्हे तोड़कर फेंक सकें। हमारी मौलिकता पूर्ण अनुशासन के साथ पूर्ण स्वतन्त्रता को संयुक्त कर देने में है। वह संन्यास आश्रम में भी सम्भव है।'
131. दो विभिन्न जातियों का सम्पर्क होने पर वे घुलमिल जाती हैं और उनसे एक बलशाली तथा भिन्न नस्ल पैदा होती है। वह स्वयं अपने को सम्मिश्रण से बचाने की चेष्टा करती है और यहीं तुम जाति-भेद का प्रारम्भ देखते हो। सेव को देखो। चयनात्मक प्रजनन के द्वारा श्रेष्ठतम प्रकार उत्पन्न किये जाते हैं, पर एक बार दो नस्लें बनाकर हम उनकी किस्म को सुरक्षित रखने की चेष्टा करते हैं।
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