ई-पुस्तकें >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित सूक्तियाँ एवं सुभाषितस्वामी विवेकानन्द
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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
128. पश्चिम में लोगों ने स्वामीजी से कहा कि यदि बुद्ध को क्रूस पर चढ़ाया गया होता, तो उनकी महानता और अधिक प्रेरणादायिनी हुई होती। स्वामीजी ने इसे 'रोम निवासियो की बर्बरता' की संज्ञा दी और कहा, ''निम्नतम और सर्वाधिक पशु-सुलभ रुचि कार्य की ओर होती है। इसलिए दुनिया सदैव महाकाव्यों से प्रेम करती रहेगी। यह भारत का सौभाग्य है कि उसने 'सिर के बल फेंक दिया गहरे गर्त मे' लिखनेवाले मिल्टन को नहीं उत्पन्न किया। उस सब का प्रक्षालन ब्राउनिंग की कुछ कुछ पंक्तियों से ही भली प्रकार हो गया था!'' उसके मतानुसार इस कथा की महाकाव्यात्मक शक्ति ने ही रोमनों को प्रभावित किया था। 'क्रूसीकरण' ने ही ईसाई धर्म को रोम की दुनियां तक पहुँचाया था। ''हाँ, हाँ'', उन्होंने आग्रहपूर्वक कहा, ''तुम पश्चिम के लोग क्रिया चाहते हो। तुम अब भी जीवन की सहज सामान्य लघु घटनाओं के काव्य को नहीं अनुभव करते। अपने मृत बालक को लेकर बुद्ध के पास आनेवाली उस युवती माता की कहानी से बढ़कर और क्या सौन्दर्य हो सकता है? अथवा बकरियों की घटना? तुम जानते हो, 'महान् त्याग' भारत के लिए नया नहीं था!... परन्तु 'निर्वाण के बाद'! - उसका काव्यत्व तो देखो।
''वर्षा की रात है और वे चरवाहे की झोपड़ी तक आते हैं और चुचुआती हुई ओलती के नीचे दीवाल से सटकर बैठ जाते हैं। मूसलाधार पानी बरस रहा है और हवा चल रही है।
''भीतर, खिड़की से चरवाहे की दृष्टि एक चेहरे पर पड़ती है और वह सोचता है 'ओहो! पीतवस्त्र! वहीं रुके रहो! तुम्हारे लिए वह पर्याप्त है।' और फिर वह गाने लगता है।
''मेरे पशु घर के भीतर हैं, आग तेजी से जल रही है, पत्नी सुरक्षित है, बच्चे मीठी नींद सो रहे हैं। इसलिए ऐ बादलों, यदि तुम आज रात बरसना ही चाहते हो, तो बरसो।''
''तब बुद्ध बाहर से उत्तर देते हैं, ''मेरा मन नियन्त्रित है। मेरी इन्द्रियाँ सब संयमित हैं। मेरा हृदय दृढ़ है। इसलिए ऐ बादलो, यदि आज रात बरसना ही चाहते हो, तो बरसो।''
''फिर चरवाहे ने गाया 'खेत कट गये हैं। चारा खलिहान में एकत्र है। नदी लबालब है और सड़कें ठोस हैं। अत: ऐ बादलो, यदि आज रात तुम बरसना चाहते हो तो बरसो।'
''यही क्रम चलता है और अन्त में चरवाहा पश्चाताप और आश्चर्य से भरकर उठता है और शिष्य बन जाता है।
''नाई की कहानी से बढ़कर और अधिक सुन्दर क्या हो सकता है?
'' भगवान् मेरे घर के पास से निकले।
मेरा घर - नाई का!
''मैं भागा, किन्तु वे मुड़े और मेरी प्रतीक्षा की। मेरी प्रतीक्षा की - नाई की!
''मैंने कहा, 'हे प्रभु, क्या मैं आपसे बोल सकता हूँ?' ''और उन्होंने कहा, 'हाँ'!
हॉ'! मुझसे - नाई से!
''और मैंने कहा, 'क्या निर्वाण मुझ जैसों के लिए है?'
''तब उन्होंने कहा, 'हाँ'।
मेरे लिए भी - नाई के लिए भी।
और मैंने कहा, 'क्या मैं आपका अनुगमन कर सकता हूँ?'
''तब उन्होंने कहा, 'हाँ'।
मुझसे - नाई से भी!
और मैंने कहा, 'प्रभु क्या मैं आपके साथ रह सकता हूँ?' ''तब उन्होंने कहा, 'तुम रह सकते हो।'
मुझसे भी - गरीब नाई से!''
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