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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    जब प्रत्येक बात में सफलता निश्चित रहती है, तब मूर्ख भी अपनी प्रशंसा पाने के लिए उठ खड़ा हो जाता है और कायर भी वीर की सी वृत्ति धारण कर लेते हैं, पर सच्चा वीर बिना एक शब्द मुँह से बोले कार्य करता जाता है। एक बुद्ध का आविर्भाव होने से पहले न जाने कितने बुद्ध हो चुके हैं।

•    पश्चिमी राष्ट्रों ने राष्ट्रीय जीवन का जो आश्चर्यजनक ढाँचा तैयार किया है, उसे चरित्र के दृढ़ स्तम्भों का ही आधार है, और हम जब तक ऐसे स्तम्भों का निर्माण नहीं कर लेते, तब तक हमारा किसी भी शक्ति के विरुद्ध आवाज उठाना व्यर्थ है।

•    काम इस प्रकार करते रहो, मानो पूरा कार्य तुममें से प्रत्येक पर निर्भर है। पचास शताब्दियाँ तुम्हारी ओर ताक रही है, भारत का भविष्य तुम पर अवलम्बित है। कार्य करते रहो।

•    जो दूसरों का सहारा ढूँढ़ता है, वह सत्यस्वरूप भगवान् की सेवा नहीं कर सकता।

•    मैं एक ऐसे नये मानव-समाज का संगठन करना चाहता हूँ जो ईश्वर पर हृदय से विश्वास रखता है और जो संसार की कोई परवाह नहीं करता।

•    उपहास, विरोध औऱ फिर स्वीकृति - प्रत्येक कार्य को इन तीन अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है। जो व्यक्ति अपने समय ने आगे की बात सोचता है, उसके सम्बन्ध में लोगों की गलत धारणा होना निश्चित है।

•    जीवन संघर्ष तथा निराशाओं का अविराम प्रवाह है.....। जीवन का रहस्य भोग में नहीं, पर अनुभवजनित शिक्षा में है। पर खेद है, जब हम वास्तव में सीखने लगते हैं, तभी हमें इस संसार से चल बसना पड़ता है।

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