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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601
आईएसबीएन :9781613012420

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    उपनिषदों के सत्य तुम्हारे सामने हैं। उन्हें स्वीकार करो, उनके अनुसार अपना जीवन बनाओ, और इसी से शीघ्र ही भारत का उद्धार होगा।

•    क्या तुम्हें खेद होता है? क्या तुम्हें इस बात पर कभी खेद होता है कि देवताओं औऱ ऋषियों के लाखों वंशज आज पशुवत् हो गये हैं? क्या तुम्हें इस बात पर दु:ख होता है कि लाखों मनुष्य आज भूख की ज्वाला से तड़प रहे हैं और सदियों से तड़पते रहे हैं? क्या तुम अनुभव करते हो कि अज्ञानता सघन मेघों की तरह इस देश पर छा गयी है? क्या इससे तुम छटपटाते हो? क्या इससे तुम्हारी नींद उचट जाती है? क्या यह भावना मानो तुम्हारी शिराओं में से बहती हुई, तुम्हारे हृदय की धड़कन के साथ एकरूप होती हुई तुम्हारे रक्त में भिद गयी है? क्या इसने तुम्हें लगभग पागल सा बना दिया है? सर्वनाश के दु:ख की इस भावना से क्या तुम बेचैन हो?और क्या इससे तुम अपने नाम, यश, स्त्री-बच्चे, सम्पत्ति औऱ यहाँ तक कि अपने शरीर की सुध-बुध भूल गये हो? क्या तुम्हें ऐसा हुआ है? - देशभक्त होने की यही है प्रथम सीढ़ी केवल प्रथम सीढ़ी।

•    आओ, मनुष्य बनो। अपनी संकीर्णता से बाहर आओ और अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाओ। देखो, दूसरे देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम मनुष्य से प्रेम करते हो? क्या तुम अपने देश को प्यार करते हो? तो आओ, हम उच्चतर तथा श्रेष्ठतर वस्तुओं के लिए प्राणपण से यत्न करे। पीछे मत देखो; यदि तुम अपने प्रियतमों तथा निकटतम सम्बन्धियों को भी रोते देखो तो भी नहीं। पीछे मत देखो, आगे बढो।

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